कोई अपना होकर भी अपना सा नही लगता।
कोई पराया होकर भी अपना सा लगता है । 😊-
फ़िर ऐसा होता है ना वो भी हमें भूल जाते हैं
शुरू-शुरू में हमसे जो बहुत दिल लगाते हैं-
दिल मेरा जैसे...
अखबार हो गया...
पढ़कर फेंक देना...
कारोबार हो गया...-
मैं तो न बदला
बदल गया ज़माना
कोई पागल हुआ
कोई हुआ दीवाना
वो भी कोई
ग़ैर तो नहीं था
जिसके लिए आज़
मैं हुआ हूं बेगाना
बरसती आंखें
कुछ तो कहती हैं
बेवजह नहीं है
मेरा आंसू बहाना-
उसने ये सोचा...
कि किसी और को...
अपना बना कर....
वो मेरा दिल जला रही थी...
उस नादान को कौन समझाए,...
इस दिल में तो वो ही रहती है...
मेरे दिल के साथ साथ...
वो अपना घर भी जला रही थी...-
रात दिन बरसों तक...
उसने मुझे भटकाया...
फिर भी उसका प्रेम मुझे...
कहांँ नसीब हो पाया...-
रुह तक काँटे चुभोया...
दिल किया छलनी मेरा...
फिर भी जमाना जानता...
महबूब है खुदा मेरा...-
तू जब से सनम...
कहीं और है...
यहांँ बस दर्द,
दर्द का दौर है...-
मन तपता रहा...
दिल जलता रहा...
हम बिरह-वियोग...
में खपते रहे...
सुख के टिमटिम थे...
दूर सितारे...
दुख के जुगनू...
हमें डसते रहे...-
देश के राजनीतिक दलों...
अब तो कुछ शर्म करो...
सेना की शहादत पर ...
सियासत अपनी बंद करो...
एक दूसरे पर आरोपों का...
प्रत्यारोपण बंद करो ..
उबाल इतना ही है खून में...
तो आतंक के साथ जंग करो...
आतंक के साथ जंग करो...।
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