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मुख्तसर-सी है,अब जिन्दगी।
कहाँ शुरू और कहाँ खत्म। ।
बहुत करीब से देखा था,मैंने...,
कल मौत दरवाजें पर खड़ी थी।।-
होती होगी तुम्हारी पहचान घर के बाहर लगी उस नेमप्लेट से......,
लेकिन मेरे घर की पहचान आज भी मेरे गाँव की मस्जिद से होती है।।
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"जरूरी नहीं कपड़े उतार कर ही बलात्कार होता है।
शब्दों से भी बलात्कार किये जाते है।।"-
फिल्म वालों ने काल्पनिक प्रेम कहानियाँ बनाकर प्रेम को वास्तविक बना दिया।
शायरों और कवियों ने प्रेम को अधूरा और मुकम्मल कर दिया ।।
बचे हम जैसे लोग जिन्होंने इश्क़ को कुछ ज्यादा ही गंभीर ले लिया। ।
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मुझे कभी किसी से रूठना आया ही नहीं।
हर बार बस यही बताया गया,कि तुम बहुत समझदार हो।।-
"मेरी लिखी हुई प्रेम कहानियों में लोग तुम्हें ढूँढेंगे।
और जब तुम मेरी लिखी हुई प्रेम कहानियाँ पढ़ोगे,
तो मुझे ढूँढोंगे।।-
मौन.....
जिसमें बाहरी कोलाहल
की गहन पीड़ा और
अन्तर्मन की असीम
शान्ति का विरोधाभासी
समन्वय रहता है ।।
बहुत ही व्यापक है
दायरा मौन का.....!!
यह व्यंग्य और आक्षेप से
कई गुना अधिक चुभता है ।।-
एक वक्त ऐसा भी आता है,
जब दरख़्तों से पत्तें अपने आप गिर जाते हैं।।
कुछ लोग हमारी जिन्दगी में भी ऐसे ही होते हैं,
आते हैं और चले जाते हैं।।-