मन के अन्तरद्वन्द में एक युद्ध सा छिड़ा है..
इसे तुम सुलझा कर इसे परिणाम तक लाओगे क्या?
लगा है विराम जीवन पर पहेली सी बन गई है...
इसे तुम अपने गन्तव्य स्थान तक पहुचाओं क्या?
अकुलाहट से भरा हृदय में संकुचन सा है....
इसे तुम फिर से स्पन्दित, गतिमान बनाओं क्या?
अंजान पथ पर विसरा सा मन भटक रहा है....
इसे तुम प्रदर्शक बन कर हमें खुद से रूब-रु कराओ क्या?
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