काज किये बड़ देवन के तुम,वीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,जो तुमसों नहिं जात है टारो ॥
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,जो कछु संकट होय हमारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥8॥॥
दोहा : ॥लाल देह लाली लसे,अरू धरि लाल लंगूर ।
बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर ॥
।।संकटमोचन हनुमानाष्टक।।
शरणागत भक्त केवल और केवल अपने शरणय को ही एक मात्र आधार मानता है, वह अपने ईष्ट से यही पूछता है - कि जब सभी कार्यों की सिद्धि आपके द्वारा ही संभव है तो फिर हे नाथ!! आप मेरी साधना का फल देने में क्यों विलंब कर रहे हैं, देवी देवताओं के तो क्या - यहाँ तक कि भगवान राम के भी सभी कार्य आप ही के द्वारा संभव हुए, अब आप मेरी बारी भी विलम्ब न कीजिए !! मेरी सभी त्रुटियों का निवारण भी आप ही के द्वारा संभव है, हे कृपा सागर!! आपके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है🙏♥️
हे आर्तत्राण परायण मैं आपकी शरण में हूँ!
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