शिवजी को हम महादेव इसलिए कहते हैं क्योंकि वे ही सभी नवग्रहों के अधिपति देवता है ! चँद्र शिव जी की शरण में है ! शुक्राचार्य ने महादेव से महामृत्युंजय मंत्र प्राप्त किया! ! वे गणपति के पिता है जोकि केतु को दर्शाता है ! गंगा बृहस्पति को दर्शाती है! शनिदेव के गुरू भी शिव है ! शिव कार्तिकेय के पिता हैं जोकि मंगल ग्रह के मालिक है ! उन्होंने हलाहल विष पान किया जोकि राहू का प्रतीक है ! सूर्य शिव से प्रकाशित होता है! बुध ग्रह के मालिक भी शिव ही है !
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भावों की पुष्पांजलि से,
अभिव्यक्ति के पुष्प💐
हर हर महादेव -
रुद्र +अक्ष = रुद्राक्ष
जब महादेव माता सती के शव को लेकर तांडव कर रहे थे ,
तो उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे ,महादेव की आँखों के
आँसु जहाँ जहाँ गिरे, पृथ्वी का कार्य हैं सर्जन करना ,
महादेव के उन्हीं आँसुओं को पृथ्वी देवी ने रुद्राक्ष में परिवर्तित कर दिया ,इसलिए रुद्राक्ष महादेव को अतिप्रिय हैं !-
हर हर महादेव-
रावण ने जब पहली बार भगवान शिव के सामने शिव तांडव स्तोत्र गाया ,तब उन्होंने वीणा वादन किया उस वीणा की तारें रावण की स्वयं की नसों से बनी हुई थी ! रावण जब कैलाश को उठाकर ले जाना चाह रहा था तब भगवान शिव ने उसे अपने पैरसे दबा लिया! कैलाश और पृथ्वी के बीच में जब रावण दबने लगा तब उसने चीख पुकार नहीं मचायी अपितु उसने गीत गाया !शिवतांडव स्तोत्र !इसी तरह हमें भी धैर्य रखना चाहिए और महादेव अवश्य हमारी सहायता करते हैं!-
स्वामी जी की वाणी -
जैसे दाँत से जीभ कट जाए तो दर्द होता है पर क्या आप दाँत को तोड़ते हो?अगर दाँत को तोड़ो तो जीभ का दर्द तो है ही दाँत का दर्द भी हो जाएगा ! इसी प्रकार यदि कोई दूसरा व्यक्ति हमें दुख दे रहा है और बदले में हम भी उसे दुखदेते हैं तो यह दाँत को दुख देने के समान ही हैं !यदि हमारी भावना सब को सुख देने की है तो हमारी वाणी में प्रकाश हो जाएगा !जो प्राणायाम करता है ,समाधि लगाता है ,ध्यान करता है ,वह तो योगी होता है आप तो परम योगी महायोगी हो जाओगे , !योगी के भी योगी हो जाओगे अगर आपका भाव सबके हित का है!-
जब भगवान शंकर ने देखा कि माता सती ने ,
दक्ष के यज्ञ में अपमान होने से उन्होने ,
अपने शरीर का दाह कर दिया है तब शिव,
बहूत अधिक क्रोधित हुए और वे सती के शरीर के ,
शव को लेकर जब भयंकर रूप में क्रोधित होकर ,
नृत्य करने लगे तब उस सारे नृत्य को एक ऋषि ,
छुपकर देख रहे थे जिनका नाम था तंडु ,जब उनसे पूछा गया कि भगवान शंकर ने क्या किया तब उन्होंने वह सभी मुद्राएँ कर करके दिखाई और तभी से उसका नाम पड़ा तांडव और हम उसे शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जानते हैं!-
एक बार नारद जी और भगवान विष्णु गंधर्व नगरी के सामने से गुज़र रहे थे ,तब नारद जी ने पूछा - भगवान किसी का कोई अंग विहीन है किसी का कोई अंग टेड़ा मेड़ा है ,यह क्या वजह है क्योंकि गंधर्व नगरी में तो सभी राग -रागनियाँ होती है , तब भगवान ने कहा नारद जी आप जब सुर अलापते हूो ,जब आप गाते हो ,तब आप के बेसुरे सुर की वजह से ही राग रागनियाँ टेढ़े मेढ़े अंगों से हो गई है तब नारद जी ने पूछा कि भगवान आपने मेरा बहुत बड़ा अहंकार भंग किया है सबसे बड़ा रागों का ज्ञाता कौन है तब भगवान नारायण ने कहा सबसे बड़े रागों के ज्ञाता है भगवान शिव !
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असुर शब्द किसी व्यक्ति का नहीं अपितु ,
जब किसी भी व्यक्ति की साधना अहंकार के रूप में ,
उसके सिर चढ़कर बोलने लगती हैं और उस साधना का ,
दुरुपयोग करने लगता है तब वही व्यक्ति असुर रूप में ,
परिवर्तित हो जाता है !-
शिव जी के मस्तक पर त्रिपुंड क्यों होता है ?
यह रजो गुण ,सत्व गुण और तमोगुण को दर्शाता है ,
शिव जी हमारे तमोगुण को ग्रहण कर लेते हैं और ,
उसे सत्वगुण में परिवर्तित कर देते हैं ,
सतोगुण के रूप में वे एक वैरागी है , रजोगुण के रूप में वे एक गृहस्थ हैं और हमारा तमोगुण ग्रहण करके वे उसे सत्व में परिवर्तित कर देते हैं यह त्रिपुंड इन्हीं तीनों चीज़ों को दर्शाता है !
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श्रावण मास महादेव से संबंधित है ,
श्रावण शब्द श्रवण से बना है ,
हमें श्रावण मास में अधिक से अधिक ,
महादेव की कथाओं का श्रवण, शिव महापुराण ,
शिव महिमा स्रोत्र इत्यादि पाठों का श्रवण -
पठन -मनन -ध्यान इत्यादि करना चाहिए ,
हमें भगवान महादेव के पवित्र नामों का ,
अधिक से अधिक जप- ध्यान -साधना करनी चाहिए ,
तभी श्रावण मास सार्थक है !-
जैसा कि हम सब जानते है श्रावण मास चल रहा है और ,
शिवजी को जलाभिषेक बहुत प्रिय हैं ,
इसके पीछे क्या महातम है - जब समुद्र मंथन से अमृत और विष निकला तो शिवजी ने उस विष का पान किया और ,
उसे अपने गले में रोक लिया अगर वह उसे गले से बाहर निकालते तो ब्रह्मांड का नुक़सान होता और उसे वह अपने शरीर में उतार लेते तो उससे स्वयं शिव का अहित होता ,जब उन्होंने उस विष को गले में रोके रखा तब ,उसका ताप शिव को जलाने लगा तब सभी देवी देवताओं ने समुद्र काजल उन पर चढ़ाना शुरू किया ताकि उनके शरीर के तापमान को शीतल किया जा सके ,तभी से शिवजी को जलाभिषेक बहुत प्रिय हैं-