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ये हलवा नहीं प्यारे
कि तैयार ली सूजी
घी में भून कर
डाल दी उसमें चीनी
स्वादानुसार
और हलवा बन गया
कविता है
पहले प्रसंग गढ़ना पड़ता है
शब्द में भून कर
अलंकार, उपमाओं से
सजाने के बाद
कितनी बार पढ़ना पड़ता है
तब कहीं जा कर कविता परोसी जाती है
फ़िर भी
पता नहीं होता किसे ना भाए...और
किसे पसंद आती है-
सज धज के जा रहे हो
फिर से उसका बुलावा है क्या...
रिवायते सच हो रही है
यह भी उसका जलवा है क्या....
कर तो रहे हो ,पछताना मत बाद में
अरे! प्यार निभाना हलवा है क्या ....
🤣😂😅-
इंसानियत से विश्वास उसी वक़्त उठ जाता है !
जब आप........
किसी के घर जाओ
और रसोई से हलवे की खुशबू आ रही है लेकिन वो नाश्ते में बिस्कुट परोस दे!
😎🙈🙄🙄🙈😎-
मंदिर का प्रसाद सब के लिए होता है ।
कहीं पर भी देख लो "जनाब" हर जगह
(इश्क का हलवा बट रहा है )-
Dilo dimag pe chaya hai tumhare pyarka Jalwa...
Haye ki Kara...
Ab toh Tum bin Lage mennu fika ye Gajarka halwa...
😞😭😜😂-
सारा का सारा हलवा तो चिराग चट कर गए
हम सब तो बस मुंँह में पानी लिए ही रह गए-
வெள்ளை பூசணிக்காய்
அல்வா சுட சுட
நெய் வாசம் மணக்க
தித்திக்கும் இனிப்பில் !!😋
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