हिंदी को जगाना है और उर्दू से मिलना है,
गुस्ताख़ी माफ करें जनाब; यहाँ तो मौसम ही सूफियाना है।-
अब नजरें मिलाने की गुस्ताखी मत करना,, ये दोस्त
कि अभी अभी तो सम्भलना सीखे हैं....-
ज़िंदगी के ठहराव में,
है भागमभाग कैसी?
बीज के विकास में,
रफ़्तार की बात जैसी।
-
साथ होकर भी हैं बढ़े फ़ासले, हमारे दरमियाँ।
बातें संग लाती हैं खामोशियाँ, हमारे दरमियाँ।
फ़ैसले हैं जैसे बस मनमर्ज़ीयाँ, हमारे दरमियाँ।
प्रेम के शोर में बैठी सरगोशियाँ, हमारे दरमियाँ?-
मुझे याद वो हर बात है,
गम खुशी जज़्बात है।
स्याही भले गयी हो खाली,
रिक्त नहीं कोई अल्फाज़ है।।
स्थिति लगाए जो घात है,
क्या लगे यही शह-मात है ?
भला तुमसे किसने कह दिया कि,
भूल गए हम हर वो रात है??
-
क्यों ज़िल्लतों के दरमियान है तू जी रहा?
क्यों गिद्धों के मुख रहा खुद को फेंक?
मुझको तेरी परवाह है ऐ मेरे बंदे..
हूँ तेरी चेतना, कभी अंदर भी आकर देख।।-
हद के साये अनहद कर गये,
कंकड़ सारे पर्वत बन गये।
जो कर्ण दान से अभय रच गये,
तो वर्ण सुधा से छंद जंच गये।।
पथ-भ्रष्ट अक्ल पर पत्थर है,
रंग रूप से तेरे साख सत्तर है।
बेशक मन का तू राही यूँ मंद है,
जो रहा कह-तू नहीं हमारी पसंद है।।-
करना हो जब खुद को बड़ा,
भीड़ में दिखना सबसे जुदा,
कर्म में धर्म में तुम में या स्वयं में,
अल्प ही सही-सवाल करते रहिये।
जिज्ञासा की हो मन में लालसा,
या रहा देख है तू खुद में खालसा,
प्रत्यक्ष में परोक्ष में एक या अनेक में,
सूक्ष्म ही सही-सवाल करते रहिये।।-
सुबह का यूँ शाम में ढलना...
कोपल का वृक्ष में फलना...
बिस्कुट का यूँ चाय में गलना...
उंगली पकड़ छांव में चलना...
हाँ मुझे पसंद है।
पाप का यूँ पुण्य से डरना...
नदी की संतान झरना...
समय का यूँ ज़ख्म भरना...
अनुरागी सा प्रेम करना...
हाँ मुझे पसंद है।।
-