अर्चित   (गुस्ताख़ शब्द)
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Joined 13 March 2019


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YESTERDAY AT 2:43

गुलाब की तह तक जा,
मिले तुझे सिर्फ काँटे।
अपनी प्रीत को भुला,
जहां ने ये हिज़्र बांटे।।

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10 JUL AT 3:43

हम सेज़ सजाए बैठे हैं।

अपनी प्रेम प्रतीति को,
दिलकश बनाये बैठे है।

तुम क्या जानों ख़ाक होना,
ख़्वाब सच मानकर बैठे हैं।

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9 JUL AT 3:01

भीनी सी इस रौशनी में,
खुद का ही साया न दिखा।
अंधड़ हवा का यूँ चला,
फिर कलम से गया न लिखा।।

हम वृत्त में धूमिल यूँ रहे,
संताप पग पीछे हो चला।
धुरी झुकी यूँ रीढ़ की,
के ओझल जग वंदन हो पला।

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8 JUL AT 11:26

तुम आस करते हो,
कि बीते हुए वापस आयेंगे।
तुम साधना करते हो,
कि राग पुराने गीत फिर गायेंगे।
तुम बयान करते हो,
कि शब्द ये उन्हें खींच लायेंगे।
तुम हया करते हो,
कि रूह के भूखे वो क्या खायेंगे?
तुम इन्तेहा करते हो,
कि ये रास्ते आसान हो जायेंगे।

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7 JUL AT 16:23

तुम्हारी दहशत है ऐसी,
कि मुझसे तेरा नाम भी नहीं लिया जा रहा।
तुम्हें लिख भेजे इतने संदेशे तार,
कि पहुंच तो गए हैं पर उनका जवाब नहीं आया।
क्या पता तूने पढ़े हैं भी या नहीं,
कि उनके पढ़े होने या नहीं का कौतूहल मुझे काट रहा।

क्या ये तेरी कोई ज़िद है,
या रोका गया है तुम्हें मुझसे बात करने के लिये?
शायद तुम परेशान हो!
कि मैं भी यहां अवसाद का जोग बना बैठा हूँ।
गर इक छोटी सी खबर- हां या ना होती,
मैं बैठ चुका होता आश्वस्त दोनों ही दायरों के बीच।
जान गया होता तुम्हारा ठीक होना,
कि फिर न भी रहता कोई सान्निध्य पर राहत तो होती।।

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6 JUL AT 8:13

तुम ढूंढ रहे हो जिसको,
मैं वो छाँव नहीं।
हो रस्ता खोज रहे जो,
मैं वो गाँव नहीं।

न सुनहरी धूप मैं,
न मैं ठहरा मुसाफ़िर।
न बिखरा बहाव मैं,
न ही भटकता काफ़िर।

तुम चाहते हो आसमां,
मैं हूँ दलदली ज़मीं।
तुम्हें भाता आयाम है,
मैं 'गुस्ताख़' सारी कमी।।

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6 JUL AT 0:41

तराश कर खुद को झूठ से सही,
तुम बिन कही व्यथा कह गए।
पाने को मेरी छिन्न संपूर्णता,
तुम मेरी तह को अधूरा कह गए।

मेरे दिल में जितना कोरा था,
तुम ने स्याह उसको छोड़ दिया।
कुछ दिन बहका बातों से,
तुमने चूर मन को तोड़ दिया।

मैं बैठा हूँ अब भी निहारता,
तुम्हारी दी तन्हाई का शोर।
गुस्ताख़ अनपढ़ गँवार मैं,
और कहाँ तुम माहिर चितचोर।

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6 JUL AT 0:00

फूल लब पर लगाए,
अट्टहास काँटों की।

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4 JUL AT 1:17

तो भूल जाना कि
कब से नहीं हो मिले।
भुला देना रंज,
तंज और शिकवा।
याद रखना तो बस
अपने मन का गीत,
वो अकेला पहर,
लम्हें और हमारी प्रीत।।

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29 JUN AT 13:50

मिल जाता है जिनको,
उनके मन का यार,
प्रणय होती पूरी,
ख्वाहिशें बेशुमार।।

बैठा है वो अकेला,
खुद से खुद को हार,
जिसका हुआ तन्हा,
अधूरा सा प्यार।।

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