जीवन पर्यन्त प्रतीक्षा करते हैं,
हम सही समय की।
कभी टूटते, कभी बिखरते,
कभी संभलते;
कभी रोते, कभी बिलखते,
कभी मुस्कुराते;
हर परिस्थिति में करते हैं प्रतीक्षा,
सही समय की।
कभी धूप, कभी छांव,
कभी बारिश;
कभी शोर, कभी मौन,
कभी हास्य;
की हर वक़्त प्रतीक्षा,
सही समय की।
कभी बेरंग सफेद सी,
कभी काली अंधेरी सी।
कभी इन्द्रधनुष के रंगों सी,
सतरंगी; परीकथा के जैसे।
रही प्रतीक्षा,
सही समय की।
कभी हालातों से,
लड़ते झगड़ते।
कभी बिखरे तो,
खुद को समेटते।
हर पल प्रतीक्षा तो,
बस सही समय की।
शुरु होती शिशु की प्रथम,
किलकारी से।
और अंत होती,
करुण रुदन से।
ये प्रतीक्षा,
सही समय की।
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