ये कैसा संयोग है तेरा मेरा, यूँ मुझको आत्मझंकृत करता।
ज्यों सुरसरिता को छूकर आता झोंका, शीतल सौम्य स्पर्श देता।।-
तुमसे इश्क करना अगर गुनाह है तो मुझे वो गुनाहगार बनना है,तेरी वफा की कश्ती जहाँ ठहरे मुझे वो मझदार बनना है।।
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Wo sham ganga kinare ki,
Wo shor ganga ke paani ka..
Bahat kuch simta tha us ek pal me
Me akeli hokar bhi akeli na thi
Ganga ki lehre mujhse kuch keh rahi thi..
Wo sughandh rishikesh ki hawa ki,
Wo saundhi si mehak mere mahadev ki..
Me akeli hokar bhi akeli na thi..
Wo sukoon ka ek pal,
Wo chai ki kulahad,
Yunhi to Rishikesh rooh se nahi juda,
Teri chahat ka nasha mahdev ke ghat ki chai se hi toh utra..-
Mitati Hai Moorat Jeevni O Vaani Hai
Ganga Kinare Chale Jana
Mudke Fir Nahi Aana
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क्या बताऊं कि क्या हो... तुम
गंगा किनारे सुकून का एक हिस्सा हो तुम
चाय पर हुई बातों का एक यादगार किस्सा हो तुम..
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कर प्रथम आलिंगन अपनी चंदा का जब उसने माथा चूम लिया।
उसने भी नेत्र बन्द करके ख़ुद को अक्षुण्य परम शांति में विलीन किया।।-
काश कोई गंगा गुजरती इस दिल से मेरे ..
तो मरे हुए ख्वाबों को मोक्ष मिल जाता ।-
मै सूकूं लिखूंगा तुम "गंगा" किनारे समझना
मै रात लिखूंगा तुम "त्रिवेणी घाट" समझना
मै मोहब्बत लिखूंगा तुम "ऋषिकेश" समझना।-
इस जगह से लगाव ही ऐसा है
दूर जाने के नाम से ही
दिल तड़प उठता है
यहां की सादगी यहां की हवा
सासों मे भर देती है
अलग ही नशा
बचपन से घूमे हम
इन्ही रास्तों पर
कैसे भूल जाये इन
हसीन वादियों को...
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कितना ही गुस्सा हो
कितना ही अकेलापन हो
भाग कर मैं यही आजाती हूँ
ये जगह मुझे अलग ही सुकून देती है
ये गंगा का पानी, ये पहाडों की हवा
पुराना नाता है इनसे मेरा
छोड़ नही़ पाऊंगी भूला नही़ पाऊंगी
मिलू ना जो कभी तुम्हे मै कन्ही़
चले आना चुपचाप यही
कन्ही़ पानी मे पैर डाले
मेै यही नज़र आऊंगी
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