देख कर देश को जंजीरो में, आज़ादी के बिज़ बो दिए,
एक बालक वीर था ऐसा जिसने बचपन कहीं खो दिए ।
छोटी सी उम्र में वो खेल खिलौने सब छोड़ दिए,
देश के खातिर जिसने, अंग्रेज़ों के कमर तोड़ दिए ।
सुखदेव, राजगुरु के संग आज़ादी की नई राह बनाई,
लालाजी का बदला लेने को, सॉन्डर्स पर थी गोली चलाई..
अंग्रेज़ों के हर नियम हर कानून को वो तोड़ गए,
बटुकेश्वर संग दिल्ली जाकर असेंबली में बम फोड़ गए ।
उम्मीद का चमकता सूरज 23 मार्च 1931 को ढल गया,
होंठो पर मुस्कान लिए, वो वीर सूली पर चढ़ गया ।
नौजवानो में जोश भरा वो इंकलाब का नारा था,
निर्भीक साहसी वह युवा 'भगत सिंह' हमारा था ।
- कार्तिक देव
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