जिस चीज़ को प्यार किया उसी को तबाह किया,
फिर एक दिन उसी के लिए रोये तमाशा सारे आम किया,
उन खेतों को हटा कर घर बना लिया हमने,
अब उन्हीं खेतों को पाना चाहते हैं,
पहाड़ो को तोड़कर इमारतें बना ली हमने,
अब उन्हीं पहाड़ों में जाने के सपने सजाते है,
नदियों को बर्बाद करते जरा सी शर्म नहीं आती हमें,
लेकिन पाप धोने हम उन्हीं नदियों के पास जाते हैं,
पेड़ काटते हुए हाथ नहीं काँपते हमारे,
पर जब हवा नहीं मिलती कंठ सुख जाते है,
जिसे इतना चाहते है हम उसे इतना क्यों तड़पाते हैं,
क्यों उसके लिए जरा नहीं सोचते,
बस अपना ही स्वार्थ क्यों साधते है...
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