आज चाँद को, ग्रहण लगा है,
आज चाँदनी रुसवा है....!!!
महफ़िलें तो, उजड़ चुकी हैं
आखिर में, तूँ ही, तनहा है.
तूफ़ां, जिस को, रौंद गया
सपनों का, ये, वो क़स्बा है.
आज चाँद को, ग्रहण लगा है,
आज चाँदनी रुसवा है....!!!
मोह माया सब, छूट गयी थी,
मन फिर से, क्यूँ बहका है,
शोला था, ये बुझने वाला,
उस मे से, शरारा दहका है.
आज चाँद को, ग्रहण लगा है,
आज चाँदनी रुसवा है....!!!
बिजली, कहीं है गिरने वाली,
तेरे रुख से, आँचल ढलका है.
तेरे आने का सबब नहीं, तो,
क्यूँ ये, जर्रा - जर्रा महका है.
आज चाँद को, ग्रहण लगा है,
आज चाँदनी रुसवा है....!!!
© डॉ. सीए. सुनील शर्मा 'सरल'
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