हाँ, धीमी है बढ़ने की चाल मेरी
मैं स्वाभिमान साथ लेकर चली हूँ-
शिनाख्त ना हो सके बज़्म में गुस्ताखों की
हर मासूम को सर झुकाये रखने का फरमान मिला है-
पहन लिया है मेरे मन ने तुम्हें लिबास की तरह
देह गलकर एक दिन तुम्हारे मन में मिल जायेगी-
दिल लगा बंजारन से बंजारा हो गया।
परदेश सा ये देश हमारा हो गया।-
प्रेम में छला गया,
प्रेम ही चला गया।
भिगोकर मुझे प्रेम में
प्रेम ही जला गया।-
किसी के इंतजार में एक उम्र नाकाम हो गई
किसी से सुबह मिले और मिलते ही शाम हो गई-
इन अंधेरों को तूने दिल से जो चाहा
अब हमारी हर सांस में ज़िक्र सिर्फ तेरा है...-
औरतों ने श्रृंगार अपने लिए करना सीखा ही नहीं
वरना वे समझती की अलंकार का सार रिझान से बहुत परे है
आइने में शर्माता रूप औरों के लिए नहीं उनके अपने आत्मविश्वास के लिए है
सौंदर्य-आविष्कार छिपाव या दिखावे के लिए नहीं बल्कि उनके खुद की स्वीकृति के लिए है
मगर अफ़सोस ! औरतों ने श्रृंगार अपने लिए करना सीखा ही नहीं-