Devdas
फरेब है लकीरें मेरे हाथ की,मगर तू बेवफा तो नहीं,
मेरे जिस्म का हिस्सा किसी और वहशत का भुका तो नहीं।
अपने दिए हुए ज़ख्म पर मरहम लगा के कहते हो
संभल जाएगा तू फिर एक बार,आदतन ये इतना बुरा तो नहीं।
की रात होने को है चल अपने घर को चलते है
यकीनन तेरे ही ख्वाब देखेंगे,आएगी नींद बेवजह तो नहीं।
तू तसल्ली रख तेरे सच और झूट मुझ तक ही है,
राज ख़तम होंगे राख पर मेरी,बशर्ते अभी मै मरा तो नहीं।
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