बड़ी अलहदा अदाएँ रखते हैं,
देखते भी हैं तो नजरें झुकाएँ रखते हैं...
हमें इल्म रहती है उनके इरादों की,
वस्ल की तवक्को में हम भी पलकें बिछायें रखते हैं...
आहटे भी उनकी घंटियों सी बज उठती है,
हर पल कोई धुन आबसारों सी बहती है...
काने भी अपनी चोकसी बढ़ाये रखते हैं,
आँखें भी महफिल सजाये रखते हैं...
संजीदगी फरा़ग दे जाती है उनकी,
मेरे हर दर्द का वो जब से हिसाब रखते हैं...
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