एक छोटा बच्चा,जैसे जैसे बड़ा होना शुरू होगा।
उसके जीवन में 'संगत' नाम की चीज़ का प्रवेश होगा।
उसके बाद 'संगत' के हिसाब से ही 'कर्म' होने लगेंगे।
अब ये भला किसको पता हो कि
अच्छे होने लगेंगे या बुरे होने लगेंगे।
इन 'कर्मों' से या तो वो कुछ पा लेगा।
या शायद कुछ खो देगा।
थोड़ा दूर चलकर 'सीख' भी मिल जाएगी।
और जब उसको 'सीख' मिल जाएगी।
तो एक नयी आश जागने लगेगी।
खुद में 'बदलाव' लाने की कोशिशें शुरू होने लगेगी।
अन्त में इन सबका 'निष्कर्ष' निकलकर आएगा।
वो छोटा बच्चा! आज मैं या तुम कहलायेगा।
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