कश्तियाँ भी मिलेंगी,किनारे भी मिलेंगे
आँख जब खोलेगा नज़ारे भी मिलेंगे
रात तो साथ होंगी बस दुआ ही अपनों की
तैर जब आएगा समुन्दर को सहर तक
तोहफ़ा गैर भी देगा ठिकाने भी मिलेंगे ।
दफ़्न करले हर ज़िल्लत को तू सीने में
बहा नाकामी की कालिख़ को खूँ-पसीने में
जब ख़ुद चमकेगा ख़ज़ाने भी मिलेंगे।
फ़ख्र का फ़लसफ़ा क्या है?
बने साख इसकी दवा क्या है?
दिल-ए-नादान को मजबूत कर मजबूर कर
कर गौर ख़ुद पर ख़ुद को थोड़ा ज़ब्त कर
बादशाहते भी मिलेंगी ज़माने भी मिलेंगे।
-