शहर सुनसान, गलियां विरान हैं,
सब चाहते हैं लौटना अपने घोसलों तक,
पर मिलता नहीं है वाहन ,ना कोई समाधान है।
लोग कह रहे हैं अर्थव्यवस्था गिर रही है,
यहां छोटे दुकानों में लंबी कतार है।
जिन दवाइयों पर लगनी थी पाबंदियां,
आज बाजार में बस उसी का नाम है।
कोई भूख से बेहाल है, कोई अनाज रखकर कालाबजारी के सरताज है।
'मानवता' मत भूलो इंसानों, आज जो कुछ हो रहा है ये उसी का परिणाम है।
कोरोना और हंटा सब जैविक हथियारों के नाम है,
जो ठीक हो गया इन वायरसों के मार से, उनसे पूछो जिंदगी कितना मूल्यवान है।
अभी भी वक्त है मान जाओ बात, बिताओ पूरा वक्त अपने परिवार के साथ।
' जो डर गया वो बच गया' ,ये जो समझ गया वही विद्वान है।।
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