“निस्वार्थ स्नेह”
जिनके पास जाकर सारे ग़म भूल जाते है,
इस धरती पर ऐसे प्राणी बच्चें कहलाते है।
उनके स्नेह की तुलना करना सम्भव तो नहीं,
छल कपट से इनको कोई मतलब तो नहीं।
कह देते है वो पल भर में मन की सारी बातें,
ज़रा सा दुखे दिल तो आँसुओं की बरसातें।
वो झगड़ ले आपस में, मन साफ़ रखते है,
बच्चें हो तो मैदान और बग़ीचे भी हँसते है।
मासूमियत पर इनकी ईश्वर हैरान होता है,
हर कोई स्नेह बरसाता मेहरबान होता है।
कभी दिल दुःख जाए इनके पास चले जाना,
अंतर्मन से संतुष्ट, हृदय को भी हँसते पाना।
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