बर्षो की कठिन प्रतीक्षा को, विश्राम मिला है आज,
जन जन को सत्यता का, नव आयाम मिला है आज,
हुई जीत सनातन धर्म की, सबको मिल गया प्रमाण,
मन हर्षित है, हमारे आराध्य को धाम मिला है आज।-
ईमानदारी की राह चले, कर्तव्यपथ पर अडिग,
हर हाल मे हो।
नव ऊर्जा से संकल्प करे, संकल्प सफल सब,
नए साल मे हो।।-
ईमानदारी की राह चले, कर्तव्यपथ पर अडिग, हर हाल मे हो।
नव ऊर्जा से संकल्प करे, संकल्प सफल सब, नए साल मे हो।।-
“वक़्त की कश्ती”
वक़्त की कश्ती पर सवार होकर किधर जा रहे है?
कैसी भागदौड़ ये ज़िंदगी, ना हम समझ पा रहे है?
सुना है हमने पाने के लिए खोना पड़ता है फिर,
बेहिसाब खोया है हमने, ना जाने क्या पा रहे है?
चैन भी खोया और नींद खोई तरक़्क़ी की ख़ातिर,
फिर ये अस्थायी सपने क्यूँ हमको डरा रहे है?
गिरते पड़ते दौड़ते मिल रहे हमको ज़ख़्म कितने,
ख़ुद लगाते मरहम ख़ुद ज़ख़्मों को सहला रहे है।
कभी सम्मान, अपमान, कभी आलोचनाओं से घिरे,
ऐसे ही चलती है ज़िंदगी बस ख़ुद को बहला रहे है।-
ख़ुद को ख़र्च क्यूँ करना
ख़ुद को ख़र्च करने का क्या मतलब, यूँ व्यर्थ की बातों में,
दीया जलाने का भी क्या मतलब यूँ पूर्णिमा की रातों में।
मिले है ये लम्हें स्नेहिल मुश्किल से, तो मिल लो प्रेम से
व्यर्थ की बहस का भी क्या मतलब यूँ चंद मुलाक़ातों में।
बारिश ना समझो इसे, यह बरसता स्नेह है आसमान से,
छाता लेकर निकलने का भी क्या मतलब यूँ बरसातों में।
जीवन का हर कदम है महत्वपूर्ण, चलते रहो विवेक से,
गलत ही बहते जाने का भी क्या मतलब यूँ जज़्बातों में।
करना है स्नेह किसी से तो कर लेना बस निस्वार्थ भाव से,
ये हमारा ये तुम्हारा फिर है क्या मतलब यूँ अनुपातों में।
ख़ुद को बर्बाद कर आए फिर क्या मतलब यूँ विख्यातों में,
ख़ुद को ख़र्च करने का क्या मतलब, यूँ व्यर्थ की बातों में।-
ना रहना इस पार, ना उस पार जाना है,
तुम्हारे एहसासों में डूब हर बार जाना है,
मेरे लिए प्यार की है इतनी सी परिभाषा,
जीतकर तुमको, तुम्ही से हार जाना है।-
उसने माँगा था उम्र भर का समय मुझसे,
अपने हाथ से घड़ी, खोलकर दे दी मैंने।-
अब एकांत ही अपना घर लगता है,
हाँ, मुझे चकाचौंध से डर लगता है।-
हाँ!
मेरे अंदर है,
एक सौम्य इंसान,
क्योंकि मेरी परवरिश,
मेरी माँ के द्वारा हुई है,
माँ ने हमेशा सिखाया है,
सबकी खुद से ज्यादा फ़िक्र करना,
खुद को खोकर भी पाते रहना सभी को।-