वह बेचती है अगर अपनी अस्मत,
खड़े होकर इस बाजार में,
तो क्या उसके खुद के वजूद का कोई मोल नहीं,
तुम कीमत क्यों लगाओगे उसके शरीर की,
अगर वह नाचती है बार में,
उसके वस्त्रों की कसौटी पर तुम क्यों उसकी पहचान करोगे,
खुद की सोच को बदलो उसको तुम ना तौलो,
अपने हवस की कसौटी को उसके वस्त्रों से ना बेदाग करो,
जब देखते हो अपनी मां को अर्ध वस्त्रों में,
तब तुम्हारी हवस क्यों खत्म हो जाती है,
नारी है वह कुछ तो उसका सम्मान करो,
आज़ादी नही दे सकते कम से कम न अपमान करो,
वह बिकती है अगर इस बाजार में,
उसकी भी कोई मजबूरी होगी,
इतने लगे हैं तन के बाजार यहां पर,
फिर भी शायद बलात्कार करना तुम्हारी मजबूरी होगी........
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