स्त्रियों का वजूद गिरवी चार दीवारी में
तलाश खुद को करती रही वो अपनों में
सवालों के जवाब चुपचाप सहती गई
इक रंज भरी आह रही उसके सीने में
जानती थी नहीं हल बजाय ऐसे जीने के
कि अपनी बात तक रखे इस कैदखाने में
तानों और लांछित हो जाने के बहाने लिए
पंख कटी चिड़िया देखती रही आसमानों में
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Chardiwari main qaid hai tery yaaden Aaj bhi
Tere bin sub suni suni si lagti hai Ye wadiyan-
Khubsurti ki sanad liye Firte hai aashiq
Apni mehbooba ki...
Jo nhi dikha is duniya me khuli aankho se
Wo sirat char diwari me dfn hokar rahgyii...
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सुबह लिखती हूँ, शाम लिखती हूँ |
इस चारदीवारी में बैठे बस
तेरा नाम लिखती हूँ |-
Bahot paak hai nafrat meri
Har baar danke ki chot pe Karti hoon
Bahot behayaa hai mohbatt meri
Aksar usey char Diwari mein band rakhti hoon-
चार दीवारी के अंदर भी
है मैंने एक जहान बनाया ...
चन्द ईंटों से जुड़े मकान को
....है मैंने घर बनाया...
हर जिम्मेदारी को पुरा कर के
......... अपना हर फ़र्ज़ निभाया
चार दीवारी के अंदर भी
.....है मैंने एक जहान बनाया
हर रिश्ते को हाथ बढ़ा कर
थामा एक साथ ...
देख कर ये मेरा आशियाना प्यारा
होता मुझे खुद पर नाज़
चार दीवारी के अंदर भी
.....है मैंने एक जहान बनाया
नहीं रखी चाहते कभी बड़ी-बड़ी मैंने
जो मिला उसे दिल से अपनाया
...
अपनो से जो मिला सम्मान
...वो ताज बनाकर सर पर सजाया
चार दीवारी के अंदर भी
.....है मैंने एक जहान बनाया
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मन की मालिक
आज आसमान में उडने वाली
कल सात फेरो में जकड़ी जायगी
किस तरह अपने सपनो को तोड़
क्या फिर से मुस्का पायेगी
अाज अपने मन की मालिक
क्या कल भी वो रह पायेगी
किसी अपने की बातों को
क्या ताने बन सह पायेगी
इस आजादी केे जगँल से
क्या चार दीवारी में रह पायेगी
आज अकेली चलने वाली
क्या कल भी वो चल पायेगी
अाज अपने मन की मालिक
क्या कल भी वो रह पायेगी
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यह सुनसान अंधेरी गलियां,
या फिर,
तनहा खौफ़नाक सफ़र,
नाकामियाब हैं मुझे डराने में।
लेकिन,
वो कमरे की चारदीवारी
अक्सर मुझे डरा जाती हैं।-