अलविदा
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जानते हो ,
तुमसे मुझे
एक आस है..
मेरे जीवन के
अंतिम दिन
मुझे ....
सुहागिन ही
देखो ...
तुम ही मुझे
मेरे अंतिम
पड़ाव तक
ले जाना...
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भरोसा और उम्मीद दो ऐसी सहज जड़े हैं
जो ज़िन्दगी नाम की मिट्टी में पनपती हैं
जिसकी शाख पर कामयाबी के हरे पत्ते
खुशियों के पीले सुनहरे फूल लगते हैं ।
जो ये जड़े कमज़ोर पड़ जाएं अगर तो
मिट्टी रूपी ज़िन्दगी ख़ाली और शाखाएं
सारी सिथिल पड़ जाएगी खुशियों के
फूलों का तो नामोनिशान नहीं रहेगा ..
बाहर मत खोजो जो भी है भीतर है
उम्मीद और भरोसा खुद पर हो तो
किसी के होने न होने से ज़िन्दगी
नहीं रुकती कभी ...,अकेले खुश रहना
ज़िन्दगी को मजबूत बनाने जैसा ही है।-
इंसान होने की शर्तें सबकी नज़र में अलग होंगी।
एकाग्र चित्,
आस्थावान,
आनंदित हो..-
मुझे मुझसे मिलने न दिया गया
और ये सौदा बरसों से किया गया
छोटी सी ही आस तो मांगी थी ?
टुकड़े-टुकड़े कर के बिखेरा गया...-
खाली पड़ा मकां ..ख़ाली शहर पूछ्ते हैं
कभी यहां घरों में रोशनी रहा करती थी....?
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ये जो हल्की सी धुंध भरी होती है न ! बारिश में
कुछ नज़र नहीं आता आर पार धुंधला सा सब
मुझे मेरा सा कुछ मिल जाता है मुझमें मैं होती हूंँ
वहां मुझे कोई टोकता नहीं अकेले में पूर्ण होती हूँ
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बोलने से कहीं बेहतर होगा लिख लेना..
अनकहे शब्द मन को दुःख नहीं देते तब ..-