Ubaid Khan Uwaisi   (Ubaid khan اردو شاعر)
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Joined 6 May 2019


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Joined 6 May 2019
18 APR AT 22:36

यक़ीनन प्यार करना आसान है मगर
बिछड़ने पर टूट जाता है दिल-ओ-जिगर

दिल टूटता है तो दर्द बहुत होता है जब
तुम्हारे सामने अपना बना ले जाए दिगर

अंधेपन में प्यार न करो प्यार करो उसी से
कि उसे अपनाने पर राज़ी हो जाएं पिसर

दुनियां उजड़ जाती है उसके जाने के बाद
अंधेरा ही अंधेरा नज़र आता है देखिए ज़िधर

खुमार चढ़ेगा उसके सिर मोसिम के मैखाने का
भूल जाएंगी जब हो जाएंगे 1,2 लख्त-ए-जिगर

उसके साथ बिताए हुए हर लम्हें याद आएंगे उबैद
संजोए थे जो ख़्वाब पल पल तड़पाएंगे बनके मिरर

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15 APR AT 9:04

इक शख़्स क्या बिछड़ा मुझसे उबैद
मेरी सारी ज़िंदगी नासूर बन गई

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14 APR AT 19:26

वो मेरे पास होकर भी मुझसे दूर हो गई
यूं लगा जैसे मेरे बदन से रूह जुदा हो गई

आ जाती थी ख़्वाबो में देने तसल्ली मुझे
कमबख़्त अब मेरी रातों की नींद ही खो गई

अब याद आती है तो रोना चाहता हूं मैं मगर
आंसू निकलते नहीं शायद आंखें खुश्क़ हो गई

उसने इसे मांगा तो इसने मुझे मांगा होगा
इसकी रद्द तो उसकी दुआ क़ुबूल हो गई

सोचा था उम्र भर साथ रहेंगे इसके उबैद
वाह रे क़िस्मत वो अब किसी ओर की हो गई

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14 APR AT 15:49

काश कर दिया होता उसने मुझे प्रपोज़
ना देखने को मिलते मुझे ऐसे बुरे रोज़

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14 APR AT 15:00

تجھے پانے کی لاکھ کوشش کی مینے
تجھے اپنا بنانے کی لاکھ کوشش کی مینے
اک پل میں تیرے والدین نے تیرا ہاتھ دے دیا موسم کے ہاتھ میں
اسی تناؤ میں آکر زندگی کی خودکشی کی مینے

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21 MAR AT 7:49

मुक्तसर सी ज़िंदगी है क्या मेरा क्या तेरा
ये दुनियां भी फ़ानी है क्या मेरा क्या तेरा
महान सिकंदर भी खाली हाथ गया इस जहां से
अब तू ही बता मेरे दोस्त क्या मेरा क्या तेरा

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15 JAN AT 21:19


کون سمجھے درد اے دل کی صدا
جو سمجھ لے بے-زباں کی ہے اُسکی ادا

کبھی نفرت کبھی چاہت ہوتی سدید ہے
نفرت میں جو حال سمجھ لے وہی ہے وفا

امیروں کے تو ہزاروں خیرخواہ ہوتے ہیں
مفلسی میں جو ساتھ نبھائے اُسکی ہے ردا

کوئی آنسو بہا کر خوش دکھائی دیتا ہے
مگر جو خوشی میں روئے وہ دل سے ہے جدا

انساں کو آسکار کر دیتا ہے چہرا اُسکا
عبید جو برے حال کو سنبھال لے اسی کا ہے مزا

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10 DEC 2024 AT 12:11

तेरे बिन ये ज़िंदगी मज़बूरी है
तेरे साथ रहकर ही ज़िंदगी पूरी है

जब भी तन्हा होता हूं तू याद आती है
तुझसे दूर रहना मेरी ज़िंदगी अधूरी है

रिश्तों की क़द्र करो उन्हें निभाना सीखो
रिश्तों की क़द्र है इबादत बंदगी ज़रूरी है

बारिशों में अक्सर तेरा साथ याद आता है
तेरे साथ रिश्ते में थोड़ी आशिक़ी ज़रूरी है

नींद आती नहीं अक्सर चांदनी रातों में उबैद
अकेले पन में तेरे साथ सुबह जगी ज़रूरी है

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5 SEP 2024 AT 17:55

प्यार दिया इल्म दिया, दिये अच्छे संस्कार
माँ मैं तेरे क़दमो को चूमकर हूँ तेरा शुक्रगुज़ार

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4 SEP 2024 AT 19:58

इल्म हासिल करो ख़ुद को क़ाबिल बनाने के लिए
पढ़ाई जारी रखो मुस्तक़िल मंज़िल पाने के लिये

क़िस्मत कौन देखकर आया है कब बदल जाये तेरी
इसलिये मेहनत जारी रखो मुस्तक़बिल बनाने के लिए

जो लिखा है तेरे मुक़द्दर में वो मिलकर ही रहेगा
आज नहीं तो कल हार ना मानो तुम ख़ुदा के लिये

यक़ीनन कहना आसान है करना मुश्किल होता है
टूटना बिखरना मगर जंग जारी रखना जीत हासिल करने के लिये

ख़ुशियाँ आएंगी बेशक तेरी भी ज़िंदगी में इक रोज़
जब तुम डटकर खड़े होगे चुनौतियों का सामना करने के लिए

माँ बाप की दौलत पर इतराना तो क्या इतराना उबैद
मज़ा तो तब है जब लोग खड़े रहे तुमसे इक मुलाक़त करने के लिए

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