उधड़ जाएँ गर तो पैबंद लगाने ही पड़ते हैं,
फिर खुद ही सबकी नज़रों से बचाने भी पड़ते हैं ।
हो जाए सुराख तो लिबास रिश्तों के बदल लीजिए,
गर न हो गुंजाईश तो फिर संभलकर संभाल लीजिए।
यूँ तो ज़िदगी तन्हा भी बसर हो ही जाती है,
पर रिश्तों में तन्हाइयाँ बहुत तोड़ जाती है ।
न जाने कितने जन्मो के सफर तय किए होते हैं ,
जो मिले हैं यहाँ न जाने वो कबके बिछड़े होते हैं ।
न सफर न फासलों को लम्बा कीजिए ,
कांधा न सही हाथ ही पकड़ लीजिए ।।
...M.A.
-