एक अपने हृदय की बात बताऊँ,
अबतक जितनी दुनिया देखी उसमें केवल और केवल मेरे परमप्रिय श्रीकृष्ण ही ऐसे हैं जो कभी कुछ चाहते नहीं अपितु प्रेम ही करते हैं, कभी कुछ माँगते भी नहीं अपितु सदा देते ही हैं, कभी मुझसे नाराज़ नहीं होते अपितु मुझे प्रसन्न ही करते हैं, कभी क्रोधित भी नहीं होते अपितु और प्यार करते हैं, कभी डाँटते नहीं अपितु मेरी सब सुनते ही हैं, कभी मारते नहीं अपितु पीड़ा ही हरते हैं, कभी कटु वचन नहीं कहते अपितु हमेशा मीठी बातों से समझा देते हैं, कभी अपमानित नहीं करते अपितु प्यार से भूल का अहसास कराते हैं, और हाँ, कभी मुझे वो नज़रअंदाज भी नहीं करते अपितु मेरा ही ध्यान कई बार भटक जाता है। यही अनुभव हैं मेरे, विश्वास कीजिए आपको भी यह अनुभव जरूर होगा एक बार लगन तो लगाइये उनसे। मेरे गिरधर साँवरिया को छोड़कर अन्यत्र जहाँ मर्जी आप भटकते रहिये, ऐसे अमृत की प्राप्ति कभी हो ही नहीं सकती। मैं तो कहूँगी मन के अश्वों को लगाम दीजिए और कृष्ण नाम रस का पान कीजिए।
||राधे राधे||
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