Triveni Shukla   (©Triveni Shukla 'तपस्')
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✍️ Writing Style: Philosophical
💠 Strongly condemn Plagiarism
💠 Nostalgic
Joined 13 June 2020


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Joined 13 June 2020
17 APR AT 7:13

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला, कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी॥

लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा, निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला, सोभासिंधु खरारी॥

कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी, केहि बिधि करूं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता॥

करुना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयउ प्रगट श्रीकंता॥

ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया, रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहै॥

उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥

माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख परम अनूपा॥

सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना, होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं, ते न परहिं भवकूपा॥

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22 JAN AT 10:03

राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥

श्री राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं🙏

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13 APR 2023 AT 3:06

सुकून के पल

एक मुद्दत के बाद आज फिर बचपन वाला सुकून मिला
जब अचानक से बिना किसी पूर्व सूचना के बिजली चली
गयी। ऐसा लगा कितना जरूरी था इसका कुछ देर के लिए
चले जाना। सुख के सब साधन होते हुए भी सुख हमसे
कोसों दूर था। बिजली जाते ही मन प्रफुल्लित हो उठा,
जैसे ढर्रे पर चलते जीवन में एक नवचेतना का संचार हुआ
हो, जैसे एक आत्मीय सुख मिला हो। खुशियाँ प्रमाद के
साधन नहीं बल्कि सुकून के पल खोजती हैं। संसाधनों से
दूर, चलो सुकून के कुछ पल संजोएँ 🦋

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12 FEB 2023 AT 23:14

मेरी
कविता
पर
दीदी
के
विचार

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4 FEB 2023 AT 13:35

श्वेत-श्याम सा स्थिर जीवन, खोज रहा पर सुलभ कहाँ,
भ्रम पोषित रंगीन जहाँ में, फिरूँ भटकता यहाँ-वहाँ!

श्वेत, श्याम दो छोर अडिग और बीच बसा रंगीन जहाँ,
माया का अदना लोलक हूँ, नियति है दोलन मुक्ति कहाँ!

माया का रंग बड़ा ही गहरा, उस जैसा रंगरेज़ कहाँ,
एक-एक जीव रंगा नट के रंग, स्वांग हर तरफ सत्य कहाँ!

जले अलख जो गुरु-ज्ञान की, भस्म करे माया का जहाँ,
वाष्पित होकर उड़े रंग सब, श्वेत-श्याम हो जाये जहाँ!

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22 OCT 2022 AT 23:38

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25 SEP 2022 AT 21:00

बढ़ते कलियुग की छाया में पाया असुरों ने फिर आकार,
फिर काली का हो अवतार, फिर काली का हो अवतार!

सत्यभूमि अब बनी मरुस्थल, झूठ की बढ़ रही पैदावार,
फिर काली का हो अवतार, फिर काली का हो अवतार!

विकराल रूप इस महिषासुर से नहीं पा रहा कोई पार,
फिर काली का हो अवतार, फिर काली का हो अवतार!

बूँद-बूँद अब रक्तबीज की, मचा रही है हाहाकार,
फिर काली का हो अवतार, फिर काली का हो अवतार!

उत्सव पर्व हुए बाजारू, निर्धन हैं बेबस लाचार,
फिर काली का हो अवतार, फिर काली का हो अवतार!

शोषित जन का आक्रोशित मन, करे निरंतर यही पुकार,
फिर काली का हो अवतार, फिर काली का हो अवतार!

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1 SEP 2022 AT 17:02

काल के जंजाल में तिनके सा खोता जा रहा हूँ,
चेतना घटती निरन्तर जड़ सा होता जा रहा हूँ!

ख्वाब था खुशबू बिखेरुं धूप सा जलकर सदा,
पर अँगीठी के धुएं सा व्यर्थ होता जा रहा हूँ!

ख्वाब था ब्रह्माण्ड की ध्वनि ॐ से अनुनाद हो,
पर अहं की तीव्र प्रतिध्वनि में हिलोरें खा रहा हूँ!

ख्वाब था नवसृजन में ही लीन रहने का निरन्तर,
पर यहाँ जड़वत पड़ा ढर्रे पे जीता जा रहा हूँ!

नवचेतना भर दो प्रभू , तुम साथ हो ये भान हो,
हर नई बाधा पे मैं विश्वास खोता जा रहा हूँ!

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12 JUL 2022 AT 11:26

आकांक्षाओं के बीज को हृदय में महफूज़
रखना। उसे परिश्रम के पसीने से निरंतर
अभिसिंचित करना, दृढ़ इच्छाशक्ति से
प्रस्फुटित होने की व्याकुलता प्रदान करना
और कृतज्ञता के सुगन्धित वातावरण में
अविराम फलित होने देना।

अपनी आकांक्षाओं को दुनिया से साझा
मत करना। साझा करते ही वो बोझ बनने
लगेंगी। फिर तुम असफलताओं से सीखने
के बजाय उन्हें अपनी काबिलियत पर एक
प्रश्नचिन्ह की तरह देखोगे। और धीरे-धीरे
तुम अपने अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगाने
लगोगे। इसलिए भले ही तुम अपनी सभी
आकांक्षाओं के फल दुनिया को समर्पित
करना परन्तु फलित होने तक उस वृक्ष
को महफूज़ रखना।

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11 JUN 2022 AT 21:30

हल्दी, मेंहदी और संगीत का उत्सव बारी-बारी,
परिवार में एक नया सदस्य जोड़ने की है तैयारी।

उपवन का हर रंग समेटे बन्नो जब शरमाती है,
लाखों चाँद निछावर उसपे यूँ ही माँ कर जाती है।

पुलकित होती माँ की ममता और पिता का प्यार,
जब घोड़ी चढ़ आता है लाडली का राजकुमार।

आशीर्वाद दिया देवों ने लेकर साक्ष्य दशों दिक्पाल,
वर-कन्या ने एक-दूजे को जब पहनाया है जयमाल।

पाणिग्रहण की घड़ी है शुभ पर एक पिता पर भारी,
भारी मन से सौंप दिया वर को अपनी दुनिया सारी।

नवजीवन है, नया सवेरा, नया है सपनों का संसार,
अद्भुत रंग भरो तुम इसमें तुम्हे मुबारक नवपरिवार।

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