Triveni Shukla   (©Triveni Shukla 'तपस्')
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✍️ Writing Style: Philosophical
💠 Strongly condemn Plagiarism
💠 Nostalgic
Joined 13 June 2020


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18 APR AT 19:34

नए-नए धन के जोश में जब तुम ये बोलना
कि "पूरी रिश्तेदारी में कोई ऐसा नहीं है जिसने
मुझसे उधार न मांगा हो," तब तुम ये गिनना मत
भूलना कि अपनी मुफ़लिसी के दिनों में तुमने
किस-किस से उधार मांगा था।

धन से जागा जोश प्रायः अहंकार और उन्माद में
तब्दील हो जाता है, परन्तु जरूरत है उस जोश
को होश के साथ उन लोगों के भले में लगाने की
जिन्होंने तुम्हारा तब साथ दिया था जब तुम
कुछ भी नहीं थे।

कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाए बौराय जग, या पाए बौराय।।

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26 FEB AT 9:51

!! भोले का तिरशूल !!

तुम्हीं तो काल हो, महाकाल हो, दिक्पाल हो भोले।
तुम्हीं संसार के कल-आज का आयाम हो भोले।।

स्वयंभू तुम ही, तुम ही आदि, तुम ही अन्त हो भोले।
तुम्हीं बारिश, तुम्हीं आंधी, तुम्हीं गिरते हो बन ओले।।

करो किरपा लिखूं गुणगान तेरा, जब कलम डोले।
तुम्हीं तो चेतना, तुम शब्द, तुमही लेखनी भोले।।

तू भोला है बड़ा भोला, कि दिल सबके लिए खोला।
दिया भक्तों ने जो मांगा, रखा मृगछाल का चोला।।

मेरे हिय में उठे हर शूल को तिरशूल से मारा।
मेरे भोले ने मुझसे हर लिया जीवन का विष सारा।।

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7 FEB AT 23:35

!! चलो प्रयाग चलें !!

जिसकी अगुआई में
साधू हैं सीना तान चले,
जिसके भय से सभी
दुर्जन हैं सीधी चाल चले।

वही सनातनी जो
कुम्भ बेमिसाल करे,
उसी 'योगी' का है मेला
चलो प्रयाग चलें।।

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7 FEB AT 23:13

!! चलो प्रयाग चलें !!

जहां हो धर्म की संसद
और सत्संग चले,
जहां हो कुम्भ का मेला
सनातनी ध्वज के तले।

वही नगरी जहां
मां गंगा से यमुना है मिले,
वहीं पे स्वर्ग है उतरा
चलो प्रयाग चलें।।

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21 JAN AT 10:33

माघ महिनवा तिरवेणी के तट पे
जगिहई हो भाग्य हमार

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7 JAN AT 23:53

!! हक़ीक़त तो तुमको पता है हमारी !!

तरन्नुम जो गाके तुम इतरा रहे हो,
गुथे हैं कई बोल उसमें हमारे।
निकलता नहीं शुक्रिया तंग-ए-दिल से,
बड़ी बेशरम सी है फ़ितरत तुम्हारी।।
हक़ीक़त तो तुमको पता है हमारी...

ये धोखे की शोहरत, ये बेनूर महफ़िल,
बेहोशी में हमसे नजर फेर लो तुम।
हमीं हम दिखेंगे नजारों में तुमको,
उतर जाएगी जब खुमारी तुम्हारी।।
हक़ीक़त तो तुमको पता है हमारी...

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29 MAY 2024 AT 8:12

हम जिसे भी पसन्द करते हैं, उसके हाव-भाव
और चाल-चलन का अनुसरण करने लगते हैं।
यह मनुष्य का एक स्वाभाविक गुण है। एक
साधक के रूप में अगर आप अपने इष्टदेव के
गुणों को धारण करने का कोई प्रयास नहीं
करते परन्तु उनके भक्त होने का दावा जरूर
करते हैं, तो निश्चित मानिये कि आप सही दिशा
में आगे नहीं बढ़ रहे हैं। ईश्वर की कृपा प्राप्ति के
लिए उनकी भक्ति के साथ-साथ उनके सद्गुणों
को अपनाना भी एक अपरिहार्य शर्त है। 

जय श्री राम🙏

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17 APR 2024 AT 7:13

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला, कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी॥

लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा, निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला, सोभासिंधु खरारी॥

कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी, केहि बिधि करूं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता॥

करुना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयउ प्रगट श्रीकंता॥

ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया, रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहै॥

उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥

माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख परम अनूपा॥

सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना, होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं, ते न परहिं भवकूपा॥

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22 JAN 2024 AT 10:03

राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥

श्री राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं🙏

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13 APR 2023 AT 3:06

सुकून के पल

एक मुद्दत के बाद आज फिर बचपन वाला सुकून मिला
जब अचानक से बिना किसी पूर्व सूचना के बिजली चली
गयी। ऐसा लगा कितना जरूरी था इसका कुछ देर के लिए
चले जाना। सुख के सब साधन होते हुए भी सुख हमसे
कोसों दूर था। बिजली जाते ही मन प्रफुल्लित हो उठा,
जैसे ढर्रे पर चलते जीवन में एक नवचेतना का संचार हुआ
हो, जैसे एक आत्मीय सुख मिला हो। खुशियाँ प्रमाद के
साधन नहीं बल्कि सुकून के पल खोजती हैं। संसाधनों से
दूर, चलो सुकून के कुछ पल संजोएँ 🦋

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