खुदकी तारीफ खुद सुनाया नहीं करते,
समझदार समजते है, बताया नहीं करते,,,।
ये,,अलग करने की तिज़ारत आप करते हैं
हम साथ बैठे परिंदो को उडाया नहीं करते,,,।
किमत हीं गीर जाती है, किमत न होने पर,
गदागर कभी मुफलिसी छुपाया नहीं करते,,,।
अपने,,,। कभी अपने कहेने से नही होते,
अपने कभी अपनो को युं रुलाया नहीं करते,,,।
बेबस थे, जो कहेना पड गया हमें वरना,
हम एसे-वैसो पर अल्फाज़ झाया नहीं करते,,,।-
कुछ अल्फाज़ तुम लिखो कुछ हम लिखते हैं
चलो तुम हम पर हम तुम पर गज़ल लिखते है
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जी करता है, उसे कह दु
जो कब से कहना चाहता हुं,
मगर डरता हुं,
कहीं वो नाराज़ न हो जाऐ,,,।
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साहब जो डर गये हो
तो इश्क क्या करोगे
दिल की बात जबां पर तो लाओ
या जख्म एक और दिल को दो गे-
नींद अब कहां आती हैं,
रातभर जगा रहेता हुं,
जिसे वो पढ़ती भी नहीं
वो सब में उस पर लिखता रहेता हुं,,,।
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ये तेरे इश्क में,,, नजाने हम क्या से क्या बन गए,
हम नहीं पर लोग कहते है,वाह,,,शायर बन गए,,,।
न दिखें कोई सूरत तेरी सूरत के सिवा मुझको,
चश्मा तुझे है, लेकिन नंबर शायद मेरे बढ गए,,,।
न था पता के ये इश्क रातों की नींद उड़ा देता है,
गलती हो गई पर ऐ-खुदा,,,अब हम तो मर गए,,,।
- kamlesh suthar
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लगा हैं, ये जमाना मुजको मिटाने को जमाने से,
युं नहीं मिटुंगा में कागज पर सिर्फ नाम मिटाने से,,,।
इतनी नकारतसे न ललकार ऐ-जालीम में हवां हुं,
रहेने दे,, ये आग ओर भडक जाएंगी मेरे आने से,,,।
हम चुप हैं,क्योंकि हाथ नहीं उठते कलमकारों से,
वरना हकूमत भी गिर जाऐ हमारे हाथ उठाने से,,,।
ये,, जो बदनामीयाँ कर रहे हो मेरी न किया करो,
में ऐक दिया हुं, अंधेर हो जाओगे मुजे बुझाने से,,,।
- kamlesh suthar
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सलीका तहज़ीब-ओ-संस्कार सीख जाओंगे,
बुजुर्गों के पास बैठा करो जीना सीख जाओंगे,,,।
मंजिल की राह आसान नही तो तुम हारना मत,
आज गिरे भी हो तो कल दौंडना सीख जाओंगे,,,।
सालों की मेहनत बड़ी बेफ़िक्री से उडां रहें हो,
जिम्मेदारी आने दो तुम कमाना सीख जाओंगे,,,।
नज़र जो रखते हो घीनोनी अपनी हर नारी पर,
बेटी चांद सी मिले तुम देखना सीख जाओंगे,,,।
छोटी-मोटी बातें बहुत हीं याद रखते हो ना तुम,
रिस्तेदारीयां बढ़ने दो सब भुलना सीख जाओंगे,,,।
सलीका तहज़ीब-ओ-संस्कार सीख जाओंगे,
बुजुर्गों के पास बैठा करो जीना सीख जाओंगे,,,।-
जीस सफ़र में निकले थे, वो सफ़र अधूरा छोड़ आए हैं,
हम अपने साथ कलम तो ले आऐ मगर किताबें भुल आए हैं,,,।
किसीको दौलतसे तो किसीको शोहरतसे नवाजा है, ऐ-खुदा तुने,
हमें युं इतनी हैरत से न देख हम तेरे दर से सिर्फ कलम हीं ले आए हैं,,,।
नजाने क्यु इस शहर में जी नहीं लगता हमारा, आखें रोज सैलाब लाती हैं,
बीमार न हो के भी हमारा हाल पूछें, उस माँ को जो अकेला छोड़ आए हैं,,,।
ये दुनिया हर शख्स की जड़ें काटना चाहती है, कहीं बुलंदियों को न छू लें
ये जानते हुए भी, जहां न खुलना था, वहां हम अपनें सारे राज़ खोल आए हैं
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तुझसे कितनी मोहब्बत है,, बयां नहीं कर सकता,
आसमान मे सितारों की गिनती में नहीं कर सकता,,,।
अपनी यादों से कहो युं इतना न सताया करे मुझको,
मे रोज युं तन्हा होकर रातभर जगा नहीं रहे सकता,,,।
मुसलसल बस तुम पर गज़ल लिखता रहेता हुं, में
ये इश्क हीं है, कोई पागलपन तो नहीं हो सकता,,,।
सुना है हकीम बनने की तैयारी में हो, छोडो,जाने दो,
जो रोग मुझे हैं, उसका कोई इलाज नहीं हो सकता,,,।
- kamlesh suthar
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