दूरियों से फर्क नही पड़ता..
बात तो
दिलों के नजदीकियों की होती है ..-
आज फिर देखी एक बूढ़ी मां देख के, मन दुख में डूब गया,
नई generation के नाम पर, औलाद, बुढ़ापे पे उनके फिर, कालिख पोत गया,
घर के बहार, मां घंटो चिल्लाती रही, दरवाज़ा खोलो खोलो,
बोलकर, घंटी बजाती रही,
न अंदर से कोई आवाज़ आई, न मां की आवाज़ सुनाई दी,
बस इस तरह, घंटे भर से, उसे देख मैं,जड़ सी खुद को पाती गई,
गर्मी लग रही है मुझको, दरवाज़ा खोल दो,
कब से बोल रही हूं मैं, कोई तो जवाब दो,
अंदर बस मौन से सब बैठे रहे, AC चला के मज़े से, हवा में सोते रहे,
कम से कम, इक पानी की बोतल तो दे दो,धूप सर पर आ गई है,
बोल मां फिर हार, खटिया में बैठ सिरहाने लेट गई,
ये कैसा मौन है? घर के भीतर से,
जिसने औलाद को भावनाओं से शून्य कर दिया है,
आवाज़ तो सुन रहे है सब,पर..भावनाओं को अनसुना,
पीड़ा विहीन कर दिया है,
मॉल के वस्त्र पहन के,आज बच्चे इतराते रहे,
मां फटे वस्त्रों से, फिर तन अपना छुपाती रही,
जो केश मां के बचपन में तुमको कितने भाते थे,
जिनसे खेल कर तुम, मां को चिढ़ाते थे,
आज मां के,उन केशो से तुम दुःखी हो गए हो,
न संभाल पाओगी मां तुम ये केश, कहकर मां को अधमुंडा कर देते हो,
बस!!अब कुछ लिखना नही चाहती, मन भी दुखता है, शर्मिंदगी भी होती है,
क्या?जवान होकर मां, औलाद ऐसी ही होती है,
हे प्रभु, बस मेरी इतनी सी विनती है, कभी किसी मां को बूढ़ी मत होने देना,
हो बूढ़ी तो, फिर मन से तन से, लाचार मां को, मत होने देना-
Galti ho jay to maafi maang liya karo....tum aadam(ahslm) ki aulad ho shaitan ki nahi
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Nikammi aulaad ka hi to naam hota hai.
Zimmedari me to sirf jute padte hai..-
Har Dukh aur Takleef ko akele sahejati hai,
Han woh sirf Maa hai jo phir bhi Muskurati hai.-
Maa-Baap apni aulad ko
vo subkuchh dena chahte hai
jo unhe aulad rhte huye
kbhi nhi mila.-
माँ जब होती है दुनिया में अपने बच्चों को हमेशा हँसाती है,
पूछ कर देख उनको जिनको माँ नसीब नहीं
अक्सर जन्न्त से माँ अपनी औलाद को बहुत रूलाती है
उसकी याद औलाद को अंदर तक तोड़ जाती है
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Tum nahi jantay ke tumharay MaaBaap ne tumhare liye kitni Qurbaniyan di hai,
Agar tum jantay toh kabhi unhe Khud se Juda na kartay.-