ज्ञान, विवेक, क्षमा का
एक पर्याय - महर्षि अष्टावक्र।
(Read in caption)-
हम कैसे दिखते हैं,
यह ज़रूरी नही,
हम चीजों को कैसे देखते हैं
यह ज़रूरी है...
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अष्टावक्र आठ अंगों से टेढ़े दिखते थें,
परन्तु उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता को जिसप्रकार से देखा,
वैसे किसी ने नही देखा,
और आज हम उनके उस दर्शन को "अष्टावक्रमहागीता" के नाम से जानते हैं...-
मोक्ष की आकांक्षा मोक्ष की यात्रा का पहला कदम है। और मोक्ष की आकांक्षा का त्याग मोक्ष की यात्रा का अंतिम कदम है।
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जिस दिन तुम समझोगे तुमने कुछ किया ही नहीं--जो हो रहा है, हो रहा है; तुम सिर्फ देखने वाले हो--उस दिन न पाप है न पुण्य है; न योग है न भोग है।
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त्याग का अर्थ छोड़ना नहीं है। त्याग का अर्थ जाग कर देखना है कि मेरा कुछ है ही नहीं, छोडूं कैसे? छोडूं क्या? पकड़ा हो तो छोडूं। हो तो छोडूं।
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समर्पण के द्वार के अतिरिक्त सत्य कभी किसी और द्वार से न आया है, न आ सकता है।
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अगर तुम दुखी हो तो अपने को कारण जानना, अगर सुखी हो तो अपने को कारण जानना। अपने से बाहर कारण को मत ले जाना। वही धोखा है।
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