बीती थी जो शाम सुहानी,
बन गई जो अब एक कहानी,
उन बिसरी बातों को ना याद करना,
वक्त यही है रुक जाओ, खुद को ना बर्बाद करना।
चांद अकेला बढ़ता जाता ,
आफताब भी ढलता जाता ,
सागर तट पर जाकर,लहरों के थमने की फरियाद ना करना,
वक्त यही है बढ़ जाओ,खुद को ना बर्बाद करना।
तूफान तो आते रहेंगे हर कदम,
थम जाएंगे यही कहानी हर जनम,
आएंगे तेरे दर गम बारात लेकर, उनको तू बाद कहना,
वक्त यही है संभल जाओ, खुद को ना बर्बाद करना।
खुद को खुद से खोना नहीं,
टूटे सपनों को फिर संजोना नहीं,
मिलेंगे फिर वही राही कभी राहों में,उनको बस 'दाद' कहना,
वक्त यही है रम जाओ,खुद को ना बर्बाद करना।।
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