हर सुहानी शाम में ढलती जाती,
उगते हर सूरज के साथ बढ़ती जाती,
अपनी ही धुन में डूबी मदहोश जिंदगी,
कुछ यूं ही बीत रही खानाबदोश जिंदगी।
निकल पड़े सफर पर कुछ पाने को,
अपनी जिद से कुछ कर गुजर जाने को,
पर पता न चला कब हुयी बेहोश जिंदगी,
कुछ तो अधूरा ढूंढ रही खानाबदोश जिंदगी।
कई साथी मिले,पाने की इस राह में,
सबकी इक धुन है अफ़साने की चाह में,
छुपा के रखी है हर रत्न, ये अमरकोष जिंदगी,
कुछ खजानों से दूर चल रही खानाबदोश जिंदगी।
हर जतन में रस मिल न पाया,
हर यत्न में फूल खिल न पाया,
कोशिशों की नाकामियों से भरी,एहसान फरामोश जिंदगी,
कुछ यूं ही कट रही खानाबदोश जिंदगी।
पर सीखा कुछ सबक, हर नाकामी से,
हर गुण को दूर किया, खामी से,
बीते बातों की बची बस अफसोस जिंदगी,
कुछ तो अधूरापन समेटे है खानाबदोश जिंदगी।।
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