ankit   (@nki)
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ख़ुद को पाने की तलाश में सफ़र पर निकला हूं...
जिस दिन पा लिया ख़ुद को,रब को पा जाऊंगा।😉
Joined 17 February 2020


ख़ुद को पाने की तलाश में सफ़र पर निकला हूं...
जिस दिन पा लिया ख़ुद को,रब को पा जाऊंगा।😉
Joined 17 February 2020
22 JUL 2022 AT 10:07

अब अड़ ही गये है जब,
फिकर नही सफल होंगे कब,
पाना है सब जो हैं यहां,
जीतेंगें अब सारा जहाँ,

ठोकरों की चिंता नहीं,
नाकामी की चिता सही,
कांटों में भी सपने संजोना है,
है ही क्या अब जो खोना है,

लकीरों के सहारे नहीं,
किस्मत के मारे नहीं,
कुछ कर गुजरना है खुद से,
तब नजरे मिलाएगा खुद से

अब हार विकल्प नही,
आसमां से कुछ अल्प नही ।।

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2 MAY 2021 AT 22:40

डगर है कठिन बहुत,
संघर्ष है विस्मित अद्भुत,
मौत से बड़ा इरादा क्या होगा,
ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ।

लोग क्या कहेंगे?
हँसने दो जो हंसेंगे,
तज दे लाज को,
इसमें अमर्यादा क्या होगा,
ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ।

उगते सूरज से होगा बेचैन,
ढलती शाम छिनेगी तेरा सुखचैन,
किस्मत इससे आमादा क्या होगा,
ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ।

बस हार कर ही लौटेगा तु,
फिर रण में खौलेगा तू,
लड़ता,भिड़ता,गिरता जा,
जिंदगी का इससे ज्यादा तगादा क्या होगा,
ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ।।

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13 MAR 2021 AT 22:57

गम लाख हो जमाने में,

दर्द बेशुमार हो अफ़साने में,

दुनिया में विष का प्याला पीना पड़ता है,

इक 'टीस' है जिंदगी बस जीना पड़ता है।।

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13 FEB 2021 AT 16:49

अपने दिल को तू हर पल सजाए रखना,
अपने आंचल में लाख क्षमाए रखना,
जोर लगा ले कितनी भी दुनिया,
तू अपनी मासूमियत बचाए रखना।

सबकी दाद तू कमाए रखना,
बैरियों के लिए भी आंचल में दुआएं रखना,
बमुश्किल कैसे भी हो डगर,
तू अपनी मासूमियत बचाए रखना।

नेकी की राह पे कदम जमाए रखना,
हर लाचार कंधों पे अपनी भुजाएं रखना,
हालातों से तो हरदम भिड़ना,
तू अपनी मासूमियत बचाए रखना।

अंदर भले गमों का सागर छुपाए रखना,
आंखों में भले नमी को समाए रखना,
टूट कर बिखरना ना कभी हार के,
तू अपनी मासूमियत बचाए रखना।।

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4 FEB 2021 AT 16:57

ऐ शाम! तू इतनी अजीब क्यूँ होती है,
दुखते लम्हों के इतने करीब क्यूँ होती है,
ढल जाया कर सब्र से तू रात में,
बेचैनियों से बंधी,तू इतनी बदनसीब क्यूँ होती है।

बिसरी यादों की तस्वीर बना जाती है,
मिट चुकी नेह की लकीर बना जाती है,
बीते पलों की खोखली जंजीर बना जाती है,
चुभते सच की शमशीर बना जाती है।

इतनी कड़वी है,
फिर भी तू अपनी हबीब क्यूँ होती है,
ऐ शाम तू इतनी अजीब क्यूँ होती है।।

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30 JAN 2021 AT 19:34

आज फिर तुम वो बात कहना,
बचकानी यादों को मुलाकात कहना,
राही बनकर चले थे जिस राह पर,
हर पल, हर कदमों के जज्बात कहना,
आज फिर तुम वो बात कहना ।

रुकी पड़ी थी दुनिया जिस नजर पे,
उन झुकी नजरों के शरारात कहना,
आज फिर तुम वो बात कहना ।

थमा था लम्हा जो खामोशी के गुफ्तगू के लिए,
हर खामोशी की छुपी वो आवाज कहना,
आज फिर तुम वो बात कहना ।

माने थे जो,मेरी हर जिद को पलकों पे रख के,
मेरी बेमानी हर जीत को मेरी मात कहना,
आज फिर तुम वो बात कहना ।

बिताए थे जो तारों के दामन थाम के,
यादों के समंदर की हर रात कहना,
आज फिर तुम वो बात कहना ।।

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7 DEC 2020 AT 12:15

हर सुहानी शाम में ढलती जाती,
उगते हर सूरज के साथ बढ़ती जाती,
अपनी ही धुन में डूबी मदहोश जिंदगी,
कुछ यूं ही बीत रही खानाबदोश जिंदगी।

निकल पड़े सफर पर कुछ पाने को,
अपनी जिद से कुछ कर गुजर जाने को,
पर पता न चला कब हुयी बेहोश जिंदगी,
कुछ तो अधूरा ढूंढ रही खानाबदोश जिंदगी।

कई साथी मिले,पाने की इस राह में,
सबकी इक धुन है अफ़साने की चाह में,
छुपा के रखी है हर रत्न, ये अमरकोष जिंदगी,
कुछ खजानों से दूर चल रही खानाबदोश जिंदगी।

हर जतन में रस मिल न पाया,
हर यत्न में फूल खिल न पाया,
कोशिशों की नाकामियों से भरी,एहसान फरामोश जिंदगी,
कुछ यूं ही कट रही खानाबदोश जिंदगी।

पर सीखा कुछ सबक, हर नाकामी से,
हर गुण को दूर किया, खामी से,
बीते बातों की बची बस अफसोस जिंदगी,
कुछ तो अधूरापन समेटे है खानाबदोश जिंदगी।।

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29 NOV 2020 AT 17:40

बीती थी जो शाम सुहानी,
बन गई जो अब एक कहानी,
उन बिसरी बातों को ना याद करना,
वक्त यही है रुक जाओ, खुद को ना बर्बाद करना।

चांद अकेला बढ़ता जाता ,
आफताब भी ढलता जाता ,
सागर तट पर जाकर,लहरों के थमने की फरियाद ना करना,
वक्त यही है बढ़ जाओ,खुद को ना बर्बाद करना।

तूफान तो आते रहेंगे हर कदम,
थम जाएंगे यही कहानी हर जनम,
आएंगे तेरे दर गम बारात लेकर, उनको तू बाद कहना,
वक्त यही है संभल जाओ, खुद को ना बर्बाद करना।

खुद को खुद से खोना नहीं,
टूटे सपनों को फिर संजोना नहीं,
मिलेंगे फिर वही राही कभी राहों में,उनको बस 'दाद' कहना,
वक्त यही है रम जाओ,खुद को ना बर्बाद करना।।

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6 APR 2020 AT 16:00

बदलते देखा है तुमको मैंने,
मुझमें ढलते देखा है तुमको मैंने,
हर पल की गुजारिश में मैं था तेरी,
तेरे आईने के साए में,देखा है खुद को मैंने।

करीब हर बातों का जवाब था,
बदतरीन लम्हों का हिसाब था,
बेवजह है दुनिया की हर तरकीब,
हर वक्त मैं तुझमें बेहिसाब था ।

वक्त के धक्कों से हम टूटे नहीं,
आफत के थपेड़ों से दिल के कांच फूटे नहीं,
गिरते देखा है बड़ी इमारत को बस एक घाव से,
पर नासूरो को पाकर भी तुम मुझसे रूठे नहीं।

अधूरी इबादत को फिर पूरी कर जाएंगे,
मिलकर लम्हों के हर घाव भर जाएंगे,
अब मुखातिब होना धड़कन मेरी तब देखना,
तुम मुझसे मिलकर हद से गुजर जाएंगे ।।

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25 MAR 2020 AT 8:11

भागती फिरती थी दुनिया जब तलब करते थे हम, जब हमें नफरत हुई वह बेकरार आने को है...

तुम जिसके पीछे जाओगे, तुम्हारे पीछे जाने से ही तुम उसे अपने पीछे नहीं आने देते। तुम पीछे जाना बंद करो. तुम खड़े हो जाओ। और जो तमने चाहा था. जो तमने मांगा था, वह बरस जाएगा। लेकिन वह बरसता तभी है जब तुम्हारे भीतर भिखारी का पात्र नहीं रह जाता। मांगने वाले का पात्र नहीं रह जाता। जब तुम सम्राट की तरह खड़े होते हो। इसको ही मैं मालिक होना कहता हूं। तुम जो भी हो. वही होकर तुम मालिक हो सकते हो। तुमने कुछ और होना चाहा तो तुम कैसे मालिक हो सकते हो? तब तो मांग रहेगी और तुम भिखारी रहोगे।
:-osho

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