"उतार अल्फ़ाजो को मन से, "कागज़" पर रख देते है,
कर मन को हल्का, बोझ हम इन कागज़ों पर रख देते है"
"हैरान हूं, गर जो "तुम भी" यूं ही इसे देख पा रहे हो....!
अल्फ़ाज़ ही नहीं.! अल्फाजों के पीछे भी देख पा रहे हो!"
रुक कर तुम भी शायद शब्दों के पीछे छुपे कागज़ की
ख़ामोशी देख पा रहे हो, क्या तुम भी ख़ामोशी सुन पा
रहे हो?
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