तुम आओ जब भी कभी, देख तुम्हें यह दिल
मुस्कुरा और मैं ठहर सा जाता हूं, न जाने यूंही
कहीं मैं खो सा जाता हूँ...
तुम कहो कुछ, उससे पहले ही "हां" कह जाता हूं,
तुम देखो जब फिर हैरानी से, अरे "हां" तुम कैसे
हो? मैं ये कह जाता हूं ...
देख तुम्हें यूं लगे "शब्द" भी सभी "बोलना" कम
और बस सुनना पसंद करते हैं! लगे ये भी मेरी
तरह तुम्हें देखना पसंद करते हैं...
फिर जब जाना हो तुम्हें, "हां" कह तुमसे ये "शब्द",
और ना मुझसे कहते हैं, बुदबुदा मन में, तुम्हारे रुक
जाने की गुज़ारिश करते हैं, कुछ और देर ठहर जाने
की ज़िद करते हैं..
ये लम्हा खूबसूरत सा जब भी आ जाता हैं, मुस्कुराहट
को ख़ुशी और अहसास को अनकहा अहसास
दे जाता हैं।
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