ये है कोई अफ़साना है
या मैं यूँ ही बेवज़ह रोया हूँ-
हमारी शायरी को दिन के हिसाब से ना तौले मेम साहब,,
हम जज्बात लिखते हैं चुटकुले की कोई किताब नहीं।।-
ए फलक क्या इरादा है तेरा तू भी बता
कहीं ऐसा ना हो कि मेरी जनाजे में तेरा छाया ही ना मिले।।-
लबो से तेरे हम संवर जाएंगे
एक इशारा तो करो
हां हूं मै जलजला तूफ़ान समंदर का
तो क्या हुआ हम पिघल जाएंगे
बस एक किनारा तो बनो।।-
ढलता हुए चांद की तरह
एक दिन ढल जाओगे तुम भी "Absar"
फर्क बस इतना हैं कि
उसकी अगली सुबह एक
हसीन शाम से होकर निकलेगी
और तुम्हारी रात गुलज़ार के कब्र में गुजरेगी।।
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दूर हो जाओ तुम मुझसे
ये दिल इजाज़त नहीं देता
पास रहकर हो जाओ बदनाम
ये दिल गवारा भी नहीं करता।।-
ये नया साल का मुबारक
जाके उनको भी देदुं Absar,,
जो गुज़ार रहे थे अपनी राते
शीतो के बौछार के
जो काट रहे थे अपनी नींदे
आधी नंगी चादर में
जो तोड़ रहे थे अपनी रोटी
फेकी हुई आचार से
जो बेच रहे थे, अख़बार सड़कों पर
उसी को ओढ़ कर सो रहे थे
जो तोड़ रहे थे, पत्थर पर्वत पर
उसी में फस कर मर रहे थे।।-
वो कहती हैं कि तुम बदल गए हो
अब उन्हें कौन समझाए कि हम बदल कर भी उन्हीं के हैं-