तुम मेरे आसपास ही तो होते हो,
फिर कभी तुम हमें नजर क्यों नहीं आते हो
तुमसे मिलने के लिये तो बुलाते हो हमें
कभी तुम मुझसे मिलने मेरे शहर क्यों नहीं आते हो
हक़ जताने को तो बहुत तुम्हारी हूँ मैं,
फ़िर कभी बिन कहे मुझको समझ क्यों नहीं पाते हो
बातों से तो चाँद तारे भी दे जाओ मुझे
पर एक छोटी सी आदत भी तुम बदल नहीं पाते हो
हाँ तुम मेरे आसपास ही तो हो,
पर जाने क्यों तुम मुझे नजर नहीं आते हो
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कितना शोर है बाहर, कि हम पहले जैसे नहीं रहे,
जिसके लिये बदल गये हम, उन्हें खबर तक नहीं।।
कितने सपने अपनी आँखों में ही दबा लिये उनके लिये,
और उन्हें लगता रहा, जैसे मेरे कोई सपने ही नहीं ।।
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बहुत ख़ुशनुमा होती है ज़िन्दगी जब तक हम अकेले होते हैं
न किसी के लिए कुछ करने की फ़िकर न किसी से कुछ पाने की उम्मीद!!-
ज़िद पे आ जाऊँ तो पलट कर भी न देखूँ
अभी मेरे सबर से वाकिफ़ कहाँ हो तुम-
हाँ मैं दिखाती नहीं, पर याद तो मुझे भी आती ही होगी
वो आपकी कुछ बातें, आपकी याद तो दिलाती ही होंगी
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लिख लेती हूँ फ़िर मिटा देती हूँ कभी आपकी याद में आँसू भी बहा लेती हूँ
कितना मुश्किल है छिपाना इस दर्द को, पर हक़ नहीं है इसलिये छिपा लेती हूँ
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ये कलम बहुत कुछ लिखना चाहती है आज, पर जाने क्यों लिख नहीं पा रही है
रिश्ता बहुत पुराना तो नहीं रहा है, फिर भी आज कल आपकी बहुत याद आ रही है
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उन्हें मेरे साथ रहना तो है, अग़र मैं उन्हें कोई अपनी राय न दूँ
कराहूँ भी जो दर्द से तो,पर उनको मैं आवाज़ न दूँ-
मैं दूर रह सकती हूँ तुझसे पर उतना क़ि...
अगर नम हो आँखे तेरी तो सुखा सकूँ मैं,
तू मर्ज़ बने कोई तो दवा बनूँ मैं ।।
तू थक जाये तो तुझे कंधे पे सुला सकू मैं,
तू रूठे किसी से भी और मना सकूँ मैं ।।
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