मैं पूछना चाहती हु इस ज़माने से
की क्यों मुझे हर बार परखा जाता है?
जीस आँगन में पली बड़ी
क्यों मुझे वो पराया करार देते है?
कयूं मैं वो रिश्ते नहीं निभा सकती
जिनके सहारे मैंने अपना बचपन सँजोया है,
वो दोस्त वो किलकारियां,
वो गुस्ताखियां, वो नादानियाँ
वो सबकुछ पीछे छोड़ना होता है!!
अगर जिंदगी को इस तरह बदलना था,
तो ये सवाल है मेरा उस खुदा से
की तूने क्यों हम लड़कियों को
झूठा बचपन दिखलाया है??
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