बहुत तकलीफ देती है तन्हाई
ना जीने देती ना मरने-
एक क़दम दोस्ती का हाथ तेरे साथ जो बढ़ाया,
ख़ुदा क़सम, कृष्ण की बंसी सा एक सुकून हमने पाया।।-
हो आया खतम होने को दिसंबर,
लेकिन आये ना पापा अभी तक लौटकर।
कहा था ले आएंगे वो मेरे लिये खिलौने बैग भरकर,
मगर आये ना अभी तक कुछ लेकर।
अब थक चुकी थी उनका इन्तजार कर,
जाने कब आएंगे पापा मेरे पास चलकर।
आखिर आ ही गयी उनके आने की खबर,
सोचा चले आयेंगे वो सीना तानकर
मगर लाये गए वो तिरंगे में लपेटकर।
उम्मीद खो चुकी थी पापा को ऐसे देख कर,
मगर संभाला मैने अपने आप को हिम्मत जुटा कर।
आंसू थे मेरे आंखो में भरकर,
मगर पापा ना आने वाले थे अब लौटकर।
मन कर रहा था मैं भी चली जाऊ पापा के पास उड़कर,
लेकिन कैसे जा सकती थी माँ को अकेला छोड़कर।
आखिर बुलाते थे वो मुझे अपनी प्यारी परी कहकर,
मेरी पलके नम हो जाती हैं उन्हें याद कर।
अब मैं कुछ कर दिखाऊंगी पड़-लिखकर,
रोशन करूँगी नाम पापा का मैं भी फ़ौज में जाकर।-
बेटी जो है,
365 दिन बड़ा ही
अचंभित करता है,
नौ दिन पूजा जाता,
तो 356 दिन उसी का उलटा
कूटा जाता है, क्यूँ?-
मीत मेरे प्रीत जब से पाया है मैंने तुझे रे!,
ख़रीद लिया खुले बाज़ार में ज़िंदगी ने ख़ुद को ख़ुद से ही मुझे रे।।-
हार गये है़ं अब इस दुनिया से लड़ते झगड़ते,
अब बस तेरी गोद में सुकून की नींद सोना चाहते हैं।।-
गुमनाम है हम पर बदनाम नहीं,
हाँ करते हैं इश्क़ पर सरेआम नहीं।।-
दर्द-ए-दिल क्या कहें नम आंखें हर पर्दे पे है,
शायरों की शायरियां ये आजकल बड़े चर्चे में है।।-