"राहों में चलते चलते जब अकेले हो गई,
तब जाकर पूरे दिल से कान्हा मैं तेरी हो गई।।"-
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देते हैं हमेशा ही सच्चाई का साथ,
रहते हैं वहाँ जहाँ दिल हो साफ,
ये मत प... read more
"मेरा सर्वस्व तुमको समर्पित"
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बनो जो मूरत मेरे राधेश्याम सुंदर के तुम,
तो बनकर हार गुलाब का तेरे सीने से लग जाऊँ मैं।
बनो जो दिल मेरे कृष्ण कन्हैया के तुम,
तो बनकर धड़कन तेरी तुझमें ही धड़कती जाऊँ मैं।
बनो जो आकर धरती पर मेरे सियाराम तुम,
तो बनकर हनुमान अपना चीरकर सीना तुझे दिखाऊँ मैं।
बनो जो कोई वेदिक मंत्र का रूप क्यूँ न तुम,
तो बनकर ऊर्जा सारी तेरे ऊँ-ऊँ में समा जाऊँ मैं।
बनो जो कोई विष का प्याला भी क्यूँ न तुम,
तो बनकर मीरा इस प्रेम अमृत को तेरे पीती ही जाऊँ मैं।
बनो जो कालों के काल मेरे भोलेनाथ तुम,
तो बनकर चाँद आधा तेरी जटाओं में सँवर जाऊँ मैं।
बनो जो वृंदावन धाम या बनारस का घाट तुम,
तो बनकर माटी सदा के लिए तेरी गोद में ही सो जाऊँ मैं।
—हरि ऊँ तत्सत्
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"आख़िरकार हार जाती है हर ज़िंदगी यहाँ हार से।
परिवर्तन के अलावा कुछ भी स्थाई नहीं यहाँ ज़िंदगी में।।"-
"बताने वाला बता गया हम सुन न सकें।
सुनने वाला सुना गया तुम समझ न सके।।"-
"ये ज़िंदगानी"
ज़िंदगी जीने चली थी ज़िंदगी लिखने लगे हम।
प्रेम बटोरने चली थी प्रेम बिखेरने लगे हम।।
मरहम लगाने चली थी दर्द सहने लगे हम।
आँसू पोंछने चली थी अकेले रोने लगे हम।।
शाँति ढूँढने चली थी भीड़ में अकेले रह गए हम।
रिश्ते सँभालने चली थी चूर-चूर हो गए हम।।
ज़िंदगी जीने चली थी ज़िंदगी लिखने लगे हम।
प्रेम बटोरने चली थी प्रेम बिखेरने लगे हम।।
पहचान बनाने चली थी व्यक्तित्व गड़ने लगे हम।
दुनिया को बदलने चली थी ख़ुद सुधरने लगे हम।।
ख़ुद की तलाश में चली थी ख़ुदा को पा गए हम।
सच से जीतने चली थी आख़िरकार सब से हार गए हम।।-
"एक वजह होनी चाहिए बस जीने की,
वरना ज़नाजे पर सोना हम भी जानते हैं।।"-
"बड़े गौर से देखा आज मैंने इस चाँद को,
मेरे चाँद से सोढ़ा तो बहृमांण में कोई नहीं।।"-
"कुछ आस बाक़ी है अभी कुछ प्यास अभी बाक़ी है।
अनकहे हैं कुछ जज़्बात कान्हा! एक एहसास अभी बाक़ी है।।"-
बह गए जो मेरे अश्कों से प्रेम धारा।
मिल गई तब मुझे मेरी रानी राधा।।
मरा जो मेरे अंदर का हर अहंकार।
राम मिला फिर मुझे मेरे भीतर के द्वार।।-
"सोचो ज़रा!"
सोचो ज़रा, मैं गुम हो जाऊँ गर ग़ज़लों में,
तो तुम मुझे गीतों में गुनगुनाओगे क्या?
सोचो ज़रा, सिमट जाऊँ गर मैं सितारों में,
तो तुम मेरा चाँद बनकर पास आओगे क्या?
सोचो ज़रा, सोचो ज़रा, सोचो ज़रा,
खो गई मैं तुझमें जैसे, क्या तुम भी मुझमें खो पाओगे क्या?
सोचो ज़रा, बिखर जाऊँ गर मैं स्याही में,
तो तुम मेरी प्रेम कहानी कभी पढ़ पाओगे क्या?
सोचो ज़रा, मैं रंग जाऊँ गर राधा रूप में,
तो तुम मेरे कृष्ण का क़िरदार निभाओगे क्या?
सोचो ज़रा, सोचो ज़रा, सोचो ज़रा,
मैं सो जाऊँ गर, तो दिल में मुझे अपने सदा ज़िंदा रख पाओगे क्या?-