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#StoryBaazi
Abey O, Driver na... aadmi bas 1 hi ke liye banta hai, khud k liye to wo awara hota hai. Pehle bata kon hai wo aur main kya usse mila hun?
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StoryBaazi // एक अरसे की खामोशी...
फ़र्श से जब रहा न गया तब उसने दबी आवाज़ में कहा:
"रहने दो वही खामोशियाँ, कि बातें अब सुकून नहीं देती...
चँद लफ़्ज़ों की कारीगरी, जज़्बातों में जूनून नहीं देती..।
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Kalmunhi // कलमुँही
दुनिया में जितने भी माँ-बाप होंगे उनमे भगवान तब सवार हो जाते है जब उनकी संतान किसी और जात से इश्क़ लड़ा लेती है। पिता अक्सर विष्णु भगवान बनकर मौन के साथ सब जायज़ा लेते रहेंगे और हूँ-हाँ में माँ की सहमति के साथ अपनी सख्ती जताते रहेंगे। और माँ जो होती है उनपर सभी देवी आ जाती है क्योंकि उनको फिर हर दूसरी लड़की चुड़ैल/जादूगरनी और तमाम बुरी आत्मा नज़र आने लगती है। वो लगती है मंदिर और भगवान से मनाने की लड़के को अक़्ल आ जाए।
#StoryBaazi-
Dilwale // दिलवाले।
1991:
सोमू शर्मा को गाने की बहुत बुरी आदत थी और इससे नाज़ अच्छे से वाकिफ थी। आज भी पार्क में खेलते हुए सोमू शुरू हो गया था, " मैंने प्यार तुम्ही से किया है, मैंने दिल भी तुम्ही को दिया है.." इस बात से बेखबर की नाज़ उसे जितने अच्छे से देख रही है उतनी ही ज़्यादा अंदर से हँस रही है। नाज़, सोमू से कुछ 2-3 साल बड़ी थी उम्र में और एक ही स्कूल में दोनों पढ़ते थे। दोनों पडोसी थे। नाज़ से रहा न गया और आकर पूछा, "अरे, सोमू, तुम इतना गाना क्यूँ गाता है? अच्छा गाता है लेकिन बहुते जादा गाता है। सोमू ने शरमाते हुए मुस्कुरा कर कहा, हम तो बस तुम्हारे लिए गाते हैं, दूसरा कोई गाएँ? नाज़ को ज़ोर से हँसी आ गयी, "तुम्हारा कुछो नहीं होगा जिंदगी में, अब्बा आ गए होंगे। सोमू को जैसे कोई फर्क नहीं पड़ा और उसने कहा, "तू जा, अभी मेरी मम्मी नहीं आयी है, हम थोड़े देर में आएँगे"। नाज़ चली गयी। उसे दसवी की परीक्षा भी देनी है इस साल।
1994:
इंतज़ार वो लम्हा होता है जिसमे अपना छोड़कर सबका ख्याल आता है। इंतज़ार के बाद हाल फिर किसी बेरोज़गार जैसा हो जाता है। नाज़ अपनी बारहवीं में पास हो गयी थी। सोमू दसवीं में फेल हो गया था। यह कोई इंतज़ार नहीं था। लेकिन पास होने की ख़ुशी में नाज़ की शादी तय हो गयी थी और सोमू..
उसने तो 1 साल पहले से गाना छोड़ दिया था, हाँ बस कभी कभी एक नया गाना गुनगुनाता था, "जीता था जिसके लिए.."-
ऐज इस नॉट जस्ट आ नंबर
मैं वही रोज की तरह अपने office से करीब 6 बजे तक घर पहुच जाता हूँ ।
रोज शाम को जब चाय पीते हुए बालकनी में जाता हूँ तो अपनी बालकनी से सामने पार्क में बच्चो को खेलते हुए देखता हूँ ।
शायद वो खेलते हुए अपने school , अपने studies इन सब के बारे में नही सोचते होंगे।वो सिर्फ उस पल के खेल में खोए होते है औऱ कुछ नही । वो अपनी स्कूल की लड़ाई school में ही खत्म करके शाम को ऐसे हो जाते है जैसे कुछ हुआ ही नही।
वयस्क लोगो के साथ ऐसा नही है । acctual में ज़िन्दगी तो वो भी बच्चो वाली ही जी रहे है बस फर्क इतना है कि अपनी problems से वो इतना घुल मिल गए है कि उन्हें अपनी personal लाइफ में ले आये है ।
बॉस की tension को उस अटैची में ही बंद करके आना चाइये मगर हम ऐसा नही करते क्योंकि हम सोचते है कि ज्यादा सोचने से शायद हल मिल जाएगा , ऐसा मुमकिन है पर उस हल का क्या करना जो आपके आज की ज़िंदगी के पल खा रहा है।
और इसी के साथ अपने लैपटॉप पर ये लेख पूरा करते हुए मैं excel sheet बनाने लग गया जो मुझे कल presentation में किसी भी हालत में दिखानी थी।
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मासूमियत लुट जाती है ख़ुदा अपनाने में,
कोई मेरी कब्र से पूछे मेरी ज़ात क्या है..!!-