मैं पुष्प हूं और मैं खंजर हूं,
मै ही मदांध का मंजर हूं,
मै हरियाली मै बंजर हूं
मै कैद खगों का पंजर हूं।।
मै निर्मोही का प्यार भी हूं,
मै सुखद सा अत्याचार भी हूं,
मै अविजित वीर की हार भी हूं,
मै मुफ्त में बंटा बाज़ार भी हूं।।
मै निम्न हूं फिरभी धुरंधर हूं,
मै हारा हुआ सिकंदर हूं,
मै मोह में फसा कलंदर हूं,
मै सूखा पड़ा समंदर हूं।।
मै सन्यासी की माया हूं,
मै किसी रूह की काया हूं,
मै मौत से वापस आया हूं,
मै अंधियारे की साया हूं।।
मै मदिरा में का होश भी हूं,
मै शोर की तरह खामोश भी हूं,
मै खुशियों भरा अफसोस भी हूं,
मै लोभी का संतोष भी हूं।।
मै औघड़ हूं और सुर भी हूं,
मै हंसता हुआ निठुर भी हूं,
मै राख से बना नूपुर भी हूं,
मै जड़ बुद्धि सा चतुर भी हूं।।
मै तो कांटो का माली हूं,
मै बिना हाथ की ताली हूं,
मै समझ से तेरे निराली हूं,
मै काल से बड़ा अकाली हूं।।
-