सुख का मार्ग आत्मा
ऐसे ढाई अक्षरों में निहित है ।
और अनादिकाल से इतना सब करने पर भी प्राप्त नहीं हुआ ..
यह घाटे का धन्धा कबतक करेगा ?
@-Jainaagam-
तू विभाव में ही तन्मय है,
अब इस तन्मयता को छोड़...!
निज चैतन्य तत्व की निर्मलता,
से ही अब नाता जोड़...!!
@-Jainaagam-
प्रार्थना ऐसे करो कि जैसे सब कुछ भगवान पर निर्भर हैं
किन्तु प्रयास ऐसे करो कि सब कुछ आप पर निर्भर हैं।-
मान का त्याग करना था...।
यहाँ तो त्याग का ही मान कर बैठे...।।
कैसे होगा मार्दव धर्म...?-
कल फिर गलती करोगे तो मांफी मांगने से क्या फायदा ?
जिस प्रकार वस्त्र के पुनः मलिन हो जाने के भय से उसे धोना बन्द नहीं करते उसी प्रकार उसी प्रकार पुनः कषाय उत्पन्न होने के भय से क्षमा मांगना और करना बन्द ना करें। *
*कल फिर गंदा हो जायेगा इसलिये वस्त्र को धोने से क्या फायदा ? ऐसा प्रश्न कभी उत्पन्न नहीं हुआ और स्वच्छता का आनन्द लिया उसी प्रकार क्षमा मांगने/करने रूप निर्मलता का आज आनन्द लीजिये कल यदि कपाय उत्पन्न हुयी तो पुनः क्षमा की शरण में आयेंगे।-
कष्ट अन्य के देखता , पर अपनी सुध नाहीं
तरु पर बैठा नर कहें , हिरण जले वन माहीं-
कष्ट अन्य के देखता
पर अपनी सुध नाहीं
तरु पर बैठा नर कहें
हिरण जले वन माहीं-
फैले प्रेम परस्पर जग में,
मोह दूर ही रहा करे।
अप्रिय-कटुक-कठोर शब्द नहिं,
कोई मुख से कहा करे॥
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