वो बड़े मकान मे रहने वाले बड़े बाबू की
खुशियों का राज़ उनका वो मजदूर ही जनता है
वो बड़े घर मे रहने वाले पैसे से तो अमीरज़ादे होते है
पर दिल के धनी तो उनके के मजदूर ही होते है
माना वो दो वक्त की रोटी से गुज़ारा करना जानते है
पर बड़े मकान मे रहने वाले भी हर पल भूखे ही होते है
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वो कोई बङा अफसर नहीं
फिर भी पूरा देश चलाता है
वो एक दिन काम पर ना जाये तो
सारा देश रूक-सा जाता है
वो धूप में पसीने बहाता है
रोज लोगों के ताने खाता है
फिर भी वह देश सेवा हाथ बटाता है
वो कहीं सफाई करता है
कहीं बोझा उठाता है
स्कूल की घंटी,
बङे साहब का ऑफिस सम्भालता हैं
वो मजदूर ही है जो
हमारे जीवन को आसान बनाता हैं
वो कोई बङा अफसर नहीं
फिर भी पूरा देश चलाता है
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जो मेहनत करे वही मज़दूर है,
मगर दुनिया समझती है की....
जो मजबूर है,वही मज़दूर है।।
सच साबित कर दिखाया कोरोना महामारी ने,
अमीरो को करोड़ो भी मांफ है....
मगर मज़दूर बेचारा भूखा मरने को मजबूर है।।-
कहने के लिए तो ....
बस एक मजदूर है
पर उनकी कहानी ओरों से अलग है
जब तक शरीर में जान रहता
तब तक वह एक मजदूर रहता
शाम का चुल्हा तो हर में जलता
पर उसका घर का चूल्हा उसके आने के बाद जलता
दिनदहाड़े पर काम मिलता
आस-पास काम न मिले
ट्रेन पकड़कर शहर चला जाता
शहर आते ही नाम बदल जाता
मजदूर से Worker बन जाता
कैसे कहे ....
सूरज के निकलते ही काम पर चला जाता
अपनों की याद जब काम करते वक्त आती
मालिक के नजरों से ....
चुपके से phone घूमाता
मेहरारू जब phone पर
बच्चों की फरमायीस सुनाती
रात को भी काम करने लग जाता
कहने के लिए तो ....
बस एक मजदूर है
पर उसकी कहानी ओरों से अलग है
मालिक जब डाँट लगाता
आँख से आँसू न बहाता ....
मन-ही-मन सोचकर शांत हो जाता
मैं मजदूर हूँ ओरों से अलग हूँ
𝙃𝙖𝙥𝙥𝙮 𝙄𝙣𝙩𝙚𝙧𝙣𝙖𝙩𝙞𝙤𝙣𝙖𝙡 𝙇𝙖𝙗𝙤𝙪𝙧 𝘿𝙖𝙮
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आँखों में लिए कोई सपना
भरी दोपहरी में कुदाल उसने चलाई हैं
तब जाके कहि शाम को रोटी सिक पाई है
चला वो तपती धूप में गली-गली
तब कहि एक चारपाई उसकी बिक पाई है
शाम को घर लौट सुकून की नींद भी कहाँ उसने पाई है
गरम तपति भट्टियाँ में उसने ईटे खूब पकाई है
पर अपने घर की कच्ची दीवार कहाँ उसने पूरी बनाई है
चाह है उसे भी अपने बच्चे के भविष्य की
पर वर्तमान की लाचारी ने उसकी हर चाह मिटाई है
कर दिन भर मजदूरी चैन की साँस भी कहा उसने पाई है
कल फिर कहाँ मिलेंगी मजदूरी इस सोच में
हर मजदूर ने रात यू ही काली कर बिताई है
और आज इस महामारी ने उसकी ये आस भी मिटाई है।
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Without Labours nothing in this world,
Without Labour nothing prospers.
"International Workers Day"
1st May-
An architect gives you a beautiful blueprint!
A labourer turns that blueprint into a beautiful reality..-