चरखा थक जावे, टक टक साधते साधते
महिन कारीगरी_ उसपर बारीकी नक्काशी
ना जाने कैसे ढोए, बेचारे दुखियारे के छाती
सुत की आखिरी लालिमा कहाँ पूछी जावे
शांत बैठा जमुना किनारे, लगावे राम के नारे
ये सनथाईटिक की दुनिया, पहने हैं नाम हजारे
हम बुनकर खादी कपडों के _बच जावे माल हमारे
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