अभी तो दिसंबर की शाम बाकी है ..
सर्द मौसम में ,गरीबी का इम्तिहान बाकी है..
अनजान शहर में खुली छत का इंतजाम बाकी है ..
अभी तो उस मुफलिस की पूरी दास्तान बाकी है..
काली रातों में मरते ख्वाहिशों का जाम बाकी है..
ठिठूरते ही सही ,मगर उजालों का अरमान बाकी है..
अभी तो बेबसी और लाचारी का कत्लेआम बाकी है.. . देखते रहिए साहब अभी तो सियासत का इल्जाम बाकी है
बुझती रोशनी में जलती अलाव का काम बाकी है ..
यह तो बस शुरुआत है ,अभी तो पूरा इम्तिहान बाकी है..
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Wo kehte hai nai mohabbat kar lo
Ab kaise samjhaun,
Mohanbat toh ibadat ki tarah ki thi
Ab khuda kaise badal loon........-
यूँ जो हर रोज़ उठने से पहले ही बिखेर देता है मुझे
अब तो मुझे बता देता आख़िरकार मेरा गुनाह क्या है-
वो कोई सख्सियत नही मेरे हर ज़ख्म की वो दवा है
रखे जो कभी सर उनके गोद में सारे गम भी दुआ है
माँ कोई शब्द नही एक पूरी किताब है जज़बातों की
जिनके सामने ये पंक्ति क्या सारे ग्रंथ बिल्कुल हवा है-
जज़बातों से खेल कर भी उसका कुछ गया नही
अरे..! वो तो मुकम्मल बेशर्म है जिसमे हया नही-
नर्म होठ भी उसके अलग ही कमाल करती है
आँखों का क्या कहूँ वो सरेआम बवाल करती है
लम्स-ए-जिस्म में वो बहकती साँसों को देख
ज़ुल्फ़ बीच में आ कर हर वक़्त मलाल करती है
वस्ल के ज़ोर में उसकी टूटती कमर निहारता
नज़ारे भी उसके #Abhi की मिसाल करती है
माथे से टपकता पसीना और लतपत बदन
ख़ुदा कसम उस वक़्त क्या भौकाल करती है-
यूँ देख कर बुलंदी हमारी तुम हमें अपनाने पे तर आए
ये मेयर खानदानी है मेरा तुम इसे गिराने पे उतर आए
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