रोने के डर से अब हम मुस्कुराते नहीं
घाव गहरे हैं हम किसी को दिखाते नहीं,
कभी बैठना मेरे पास फिर से फुरसत से,
हम यूँ ही हर किसी को अपना हाल सुनाते नहीं,
तुम लगते हो हमें प्यारे ये जताते नहीं,
है तुमसे ही मोहब्बत पर दिखाते नहीं,
तुम कभी छोड़ कर तो आओ उन बाहों का सहारा,
हमारी चाहत का तकाज़ा हम यूँ ही बतलाते नहीं,
चादर की सिलवटें हम समेट पाते नहीं,
भीगे हुई तकिये को हम अब छुपाते नहीं,
इश्क़ मोहब्बत प्यार सब रोग लगा चुके हैं,
इनकी दवा हम किसी हक़ीम से लाते नहीं,
अंधेरी रातों को हमें अब वो जगाते नहीं,
बेवफाई के डर से और किसी से दिल लगाते नहीं,
जो किया मेरे साथ वो किसी और के साथ मत करना,
दर्द को शब्दों में पिरो कर सब शायर बन पाते नहीं।
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