हम! शेरों में, हाल-ए-दिल, बयां करते गए.....,
वे मेहफ़िल में, और सामाईनों की तरह, तालीयों में,
हमारी तारीफ, कर चले गए.....।।-
तू
दुर
कधीची
गेली होती
सोडूनी प्रित
घे समजून गं !
करकबुल
माझी प्रित
सखे तू
आता
ये"
हे शंकरपाळी काव्य आहे .
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शेरो के शहर मे
रहते हो अकेले
घर मे अकेले
रहते हो सवेरे
घर के कामो मे
दिलचस्पी नही तुम्हारी
इसलिए अकेले ही
सहते हो झमेले-
अफसोस था क्यू छोड़कर अपनों को गैरो में आ गया।
उदास ओर अकेला हूं जबसे तेरे शहरो में आ गया।।
बस समेटकर हौसला अपने पंख फैलाने की दर थी।
मालूम ही न हुआ आसमान कब मेरे पैरो में आ गया।।-
तेरी यादों मैं आज कल मैं इतना खोयी हूॅं ना जाने मे कहॉं हूॅं
लिखना चाहती हूॅं शेरों-शायरी , ग़ज़ल बहुत कुछ लेकिन लिखने जाती हूॅं तो सामने आते हो सिर्फ तुम ही नज़र...!!-
ये शेरो-शायरी रातों की नींद लेती है
सिर्फ सजर नहीं सजर के साथ उपजाऊ जमीन लेती है-
बो बोला कि शर्त घोड़ों पर लगाई जाती है
शेरो पर नहीं लगते
हमने भी हंसकर बोल दिया
हम तो शेरो से भी मुजरा करवा लेते
तू तो गीदड़ है-
इंतजार नही इकरार नहीं
कातिल है ये अदा
इजहार नहीं उल्फत ना सही
फिर क्यूँ दिल आप पे फिदा...!$
विरहसरीता-