सत्य के लिए किसी से न डरना, गुरु से भी नहीं, मंत्र से भी नहीं, लोक से भी नहीं, वेद से भी नहीं।
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एक नाम अधरों पर आया
अंग-अंग चंदन वन हो गया,
गंध गुंथी बाहों का घेरा
जैसे मधुमास का सवेरा
फूलों की भाषा में देह बोलने लगी
पूजा का एक जतन हो गया,
एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चंदन वन हो गया..-
मैं विश्व को चुनौती देता हूँ कि संस्कृत दर्शन की समूची व्यवस्था में एक भी ऐसा वाक्य ढूँढ़ कर दिखाये कि सिर्फ़ हिन्दुओं का उद्धार होगा, दूसरों का नहीं।
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एक ज्वलंत सवाल
क्या हमें वापस वैदिक संस्कृति को अपनाना चाहिए?
क्या आप लोगो के मत में आज की वर्ण व्यवस्था सही है?
क्या आज जो हम अपने बच्चों को इतना बोझ दे रहे है पढ़ाई का सही है?-
चलो आधुनिकता से कुछ दूर चले
चलो भौतिकता को परे करे
कुछ जाने समझे खुद को
नैतिकता से कुछ नाता जोड़े
मानवता अगर बचानी है तो
चलो वेद की ओर चले
जो सत्य सनातन मार्ग है
बस अब उसको ही चुने
भोग विलास के मार्ग को
अब तो अलविदा कहे
चलो मानवता की रक्षार्थ
हम वेद की ओर चले
अपनी संस्कृति से करे पहचान
सादा जीवन उच्च विचार
सकल मानव जाति का विकास वहीं है
सही मायने में वही सही है
चलो एक कदम तो आगे बड़े
चलो वेद की ओर चले-
ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय।।
अर्थात : हे ईश्वर (हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।
उक्त प्रार्थना करते रहने से व्यक्ति के जीवन से अंधकार मिट जाता है। अर्थात नकारात्मक विचार हटकर सकारात्मक विचारों का जन्म होता है।
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जो लोग नवीनता को नहीं मानते उनके मत से संसार में उन्नति के लिए स्थान नहीं है। यदि प्रतिभावान लोग अपनी-अपनी रचनाओं में नवीनता न लाये होते तो वेद और वाल्मीकि रामायण के पश्चात किसी का आदर ही नहीं होता।
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