पूरी तैयारी से निकली गोपियां,कान्हा को मजा चखाने के लिए
उधर कान्हा ने मीठी मुरली बजाई और गोपियां कुर्बान हो गई-
आजु गोपाल रास राचायौ, सुनो री सखियाँ सारी,
पुलिन पवित्र सुभग यमुना तीरे नृत्य करे हैं बलिहारी ;
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उस मुखड़े को देख के लजा जाता है,
जब वो सांवरा, सज-धज कर गोपियों संग रास रचाता है-
पूर्ण चंद्र शेष काल गति न बढ़ाए,
प्रिय धीर न धरे धरा धरण मन पीर रे।
मुरली मृदुल मन थिरक नचाए श्याम,
गोरी गोरी गोपीन् के स्यामल से चीर रे।
कामना मिलन मन कामिनी अधीर प्रिय,
चकित चकोरी चंद्रमोहन न आए रे।
मलयज नीर लिए जमुना के तीर हिय,
प्रेम घट राधिका का छलकत जाए रे।-
किसका वजूद कहाँ पाईएगा,
हर दिल की अलग कहानी है,
हर गोपी का अलग कृष्ण है,
हर कृष्ण की गोपी दीवानी है।
रासलीला या रामलीला,
बस दिल से दिल मिलाना है
गोपी हो या हो राधा,
यहाँ तो हर कोई दीवाना है।
मीरा ने पिया विष का प्याला,
क्यों जुड़ा नाम राधा है,
हर इश्क़ इश्क़ में कृष्ण है,
कृष्ण में भी ष आधा है।
इश़्क की बातें होती जब
मीरा, राधा है होती तब
क्या इश़्क की तृष्णा होती है
ये रब जाने या जाने सब।-
💝SURPRISE 💝
मेरे प्रत्येक कृष्ण प्रेमिका एवं सखी,
आप सबको तो ज्ञात ही है की कल "शरद पूर्णिमा" की पावन घड़ी है। "शरद पूर्णिमा" के दिन राधाकृष्ण संसार की सबसे खूबसूरत एवं मधूर रास किए थे। इसलिए हम सबके लिए ये दिन अत्यन्त विशेष होगी।
कल मेरी तरफ से आप सबके लिए एक surprise है। आशा करती हूं की आप सबको ये उपहार पसंद आए।
प्रेम से बोलो -- ।।राधे राधे ।।-
वासना-प्रतीत की साधना-यह जीत की
अंशमान छाया नहीं भ्रमभाव-अहित की
सोलह कला कण निपुणता श्री कृष्ण की
राधारानी-गोपियां सोलह-श्रृंगार प्रीत-की
कण कण में साज है ढ़ोलक मृदंग बाज है
यही महारास है यही महारास है
राधाकृष्ण साथ साथ गोपियां श्वांस श्वांस हैं
यही महारास है यही महारास है
अंग अंग तरंङ्ग पुलकित समर्पण सम भाव है
यही महारास है यही महारास है
जमना को तट पर सुमधुकर मुरलिया साज है
यही महारास है यही महारास है
प्रीति-राधिका गोपियां-अनेक हैं कृष्णा-एक हैं
यही महारास है यही महारास है
पायलिया छम-छम गोरी प्रीतम अपार वयार है
यही महारास है यही महारास है
मिलन-रचना असंख्य-आकर्षण पुष्प-गुलाल है
यही महारास है यही महारास है-
16 कलाओ से परिपूर्ण चंद्रमा-अमृत की वर्षा करता है,
इस रात कान्हा-गोपियों संग "महारास" रचाता है,
आत्मा-परमात्मा के मिलन का, ये मधुमास होता है,
वास्तव में "शरद पूर्णिमा" का ये शुभ-मूरत सबसे निराला होता है।-
तरंङ्ग अंग-अंग पुलकित भ्रू-भ्रंग।
महारस की बेला राधाकृष्ण संग।।१
भावविह्वल उन्मुक्त भावना अंग।
षोडश यौवन मेद-मेखिनी तरंङ्ग।।२
हिय-अकुल मन-प्रतिकूल मृदंग।
प्रेम व्याकुल तृष्णा अनुकूल दंग।।३
हर्ष-सम अध-मम रस-परम रम।
मुक्त-युक्त भक्त-यक्त प्रदत्त-सम।।४-